पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/२६६

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मैसूर म्युनिसिपैलिटी के अभिनन्दन में जिम्मेवारी एकदम आकर पड़ी है, वह बहुत बड़ी है । आजतक जो बोझ हमने उठाया है, वह इतना भारी बोझ नहीं था। आज से पहले तक हम जो काम करते थे, वह दूसरी प्रकार का था। लेकिन आज जो काम हम पर आकर पड़ा है, वह इतना जबरदस्त काम है कि उसमें आप सब का साथ और सह्योग न हो तो हमारा काम चल ही नहीं सकता। जब हमने इतने लोगों के प्रतिनिधित्व का दावा कर लिया, तब हमारा कर्तव्य हो जाता है, हमारा यह धर्म हो जाता है कि हमारे देश में जो गरीब लोग हैं, उनको पहला लाभ मिले, उसके बाद उन लोगों को भाग मिलना चाहिए जो अपनी आवाज नहीं पहुँचा सकते हैं । जो मजबूत लोग हैं, जो धनवान है, कुशल हैं, पढ़े-लिखे हैं, वह अपना काम किसी-न-किसी तरह निपटा सकते है, वे राजदरबार में पहुँच सकते है । लेकिन जो गरीब लोग हैं, मजदूर लोग हैं, जो झोपड़ियों में रहते हैं, उनकी आवाज कहीं पहुँच नहीं सकती। इसलिए डेमोक्रेसी (जनतन्त्र) में जो जनता के प्रतिनिधि या नेता लोग हैं, उनका यह धर्म हो जाता है कि उनका पहला ध्यान देश के गरीबों की तरफ जाए। अब आपकी म्युनिसिपैलिटियों के बारे में भी राज्य की ओर से धन की काफी मदद होती होगी । लेकिन आपको हमेशा यह समझना चाहिए कि म्युनिसिपैलिटी का यह कर्तव्य होता है कि वह अपने को सेल्फ सफिशन्सी (आत्म निर्भरता ) की ओर ले जाए। राज्य आज तो मदद दे, और कल न दे? अगर राज्य में ऐसी शक्ति पैदा हो जाए, जो कहे कि हमारा धन देहात में से आ जाता है, उसे शहर में क्यों खर्च किया जाए ? गाँववाले कहें कि हमारा हिस्सा हम को मिलना चाहिए । यह चीज़ डेमोक्रेसी (जनतन्त्र) में पैदा होनेवाली है, क्योंकि देहात को जागृत करना ही पंचायत राज्य का अर्थ है। तो शहरों में रहनेवाले बहुत से लोग अगर अपनी जिम्मेवारी न समझे और हमेशा यही शिकायत करते रहें कि हम पर कर का बोझ ज्यादा है, तो म्युनिसिपैलिटी का कारोबार कभी अच्छा नहीं चलेगा । उसकी तिजोरी हमेशा ठीक रहनी चाहिए और सब शहरियों को समझना चाहिए कि म्युनिसि- पैलिटी मारी है । तो स्वराज में हमेशा यह तैयारी रखनी चाहिए कि अपना बोझा हमें खुद उठाना है, क्योंकि अब तो बोझा उठानेवाला, न केवल कोई महाराजा है और न केवल कोई आफिसर । हमारे यहाँ किसी एक व्यक्ति की