पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/२८९

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२६४ भारत की एकता का निर्माण को नहीं दे सकेगा। जितनी बुराई होगी, उसका सारा दोष कांग्रेस पर आएगा। इसलिए मैं आपके हृदय से अपील कर आपको जाग्नत करना चाहता हूँ। यदि सच्चा त्याग करना हो, तो मान-अपमान का त्याग करने और निःस्वार्थ सेवा करने की प्रतिज्ञा करनी चाहिए । आज हीरालाल शास्त्री ने जो प्रतिज्ञा ली है, वह प्रतिज्ञा उनकी व्यक्ति- गत प्रतिज्ञा नहीं है । वह सारी कांग्रेस की प्रतिज्ञा है । मैं उनको मुबारकबाद तो देता हूँ, क्योंकि वह आज राजपूताना के प्रथम सेवक बनते हैं। लेकिन इस जगह पर बैठने से उन पर जो जवाबदारी पड़ती है, उस जवाबदारी को जब मैं सोचता हूँ, तो उनके लिए मेरे दिल में कुछ दया का भाव प्रकट होता है। उन पर कितनी बड़ी जवाबदारी आगई है। हम सब ईश्वर से प्रार्थना करें कि इस जवाबदारी को पूर्ण करने के लिए ईश्वर इनके कंधों में शक्ति दे। मैं आप लोगों से यह भी कहना चाहता हूँ कि हम लोग बहुत दिनों तक लड़े। हमें परदेसियों के साथ लड़ना था, परदेसी ताकत के साथ लड़ना था । गुलामी काटने का वही एक रास्ता था। पर आज हमें किसी के साथ लड़ना नहीं है । आज हमें अपनी कमजोरियों के साथ ही लड़ना है। तभी हम राज- पूताना को उठा सकते हैं, नहीं तो नहीं उठा सकते । आज तक जब हम लड़ते थे, तो हमारी लड़ाई का एक हिस्सा कानून भंग करने का था। उससे हमारे में एक आदत पड़ गई है कि कानून का मान नहीं रखना। यह बहुत बुरी आदत है। हमें उसको निकालना है । गान्धी जी ने हमको यह सिखाया था कि जो स्वेच्छा से कानून का आदर करता है, वही कानून का अनादर कर सकता है । तो हमारी यह खासियत होनी चाहिए कि हम सत्ता के मान का और कानून का ख्याल रक्खें । आज कानून को भंग करने का समय नहीं है। आज हमें अपने कानून की प्रतिष्ठा बढ़ानी है। जिन व्यक्तियों ने आज अपने अधि- कारों का त्याग किया है, उनकी प्रतिष्ठा किसी न किसी तरह से बढ़े, वह कम न हो, वह देखना हमारा कर्तव्य है । तो राजा-महाराजाओं की प्रतिष्ठा हम अवश्य करेंगे । राजाओं के प्रति हमारा ऐसा बर्ताव होना चाहिए कि हमारे प्रति उनकी प्रेम की भावना बनी रहे। हम चाहते हैं कि राजस्थान की प्रजा पुलिस के डंडे के डर से शान्ति न रखे, बल्कि राजधर्म और प्रजाधर्म को समझकर शान्ति रखे, तब हमारा काम चल सकेगा। हमें राजपूताना की प्रजा को प्रजाधर्म सिखाना है । तो प्रजाधर्म तो यह