पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/३०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२७४ भारत की एकता का निर्माण लेकिन अगर आप की मांग ठीक न होगी, तो आपका वह प्रतिनिधि आप लोगों से कहेगा कि यह गलत रास्ता है, इस पर चलने से काम नहीं होगा। हमें गलत मांग कभी नहीं करनी चाहिए । अब मैं आपसे एक बात और कहना चाहता हूँ। आप में से बहुत से देहात में से इन्दौर आए होंगे । देहात में आपका घर होगा, आपके रिश्तेदार होंगे। आपके आसपास के देहातों में क्या हालत है, उस पर नज़र करो तो आपको मालूम पड़ेगा कि वहां जितनी गरीबी है, ईश्वर की कृपा से उतनी गरीबी इधर नहीं है । क्योंकि हम काम करते हैं और रोज शाम तक काम करने से कुछ-न- कुछ दाम हमको मिल ही जाता है। कभी कम मिलता है, कभी ठीक भी मिल जाता है । लेकिन वे लोग, जो बेकार बैठे हैं, उनका गुजारा कैसे चल सकता है। साल भर में केवल तीन चार महीना जब खेती का मौसम आता है, तभी उन्हें मजदूरी मिलती है । बाकी बेकार बैठे रहते हैं। न कोई रोजगार है, न कोई काम । वे कैसे अपना पेट भरें? तो हमसे बहुत गरीब हज़ारों, लाखों लोग हिन्दुस्तान में पड़े है । हमें पेट भर खाना और अपने बच्चों को भी खिलाना है, लेकिन वह हमारे जो करोड़ों लोग भूखे पड़े हैं, उनके ऊपर भी हमें नजर रखनी है । नजर रखने का माइना यह नहीं कि अपनी जेब से निकाल कर कुछ उनको दो। यह बात नहीं है । मैं किसी को भिक्षावृत्ति नहीं सिखाता। उस का तो एक ही उपाय है कि हमारे मुल्क में ज्यादा धन पैदा करो। तभी हम कुछ कर सकते हैं। हमारा मुल्क आज एक ऐसे बदन के समान है, जिसमें से सारा खून निकल गया हो, जैसा पाण्डु रोग का रोगी होता है या दिक का बीमार होता है। क्योंकि हमारे राष्ट्रीय बदन में से सारा खून निकल गया है । इतने साल की गुलामी, उसके बाद यह जो ६ साल की लड़ाई चली, विश्व युद्ध हुआ, उसमें जो चूस हुई, उससे सारा खून निकल गया। अब हमें राज तो मिला, लेकिन इसमें जान हमें नए सिरे से भरनी है । अब आहिस्ता आहिस्ता धन की बूंद-बूंद डाल कर हम इस में जान भर सकते हैं, दूसरी तरह से नहीं। कई लोग कहते हैं कि कांग्रेस का राज आया तो क्या हुआ ? हमको तो कुछ भी नहीं मिला। यदि किसी ने यह उम्मीद रक्खी होगी कि अंग्रेज़ इधर छोड़ जाएगा, उसमें से हम बाँट करेंगे तो उस जैसा कोई बेवकूफ नहीं है । वह तो जो जा सकता था, अपने साथ ले गया। हमारा मुल्क आज खाली पड़ा है । मुल्क में हमें सभी कुछ नए सिरे से पैदा करना है । तो वह सब कैसे पैदा - 4