पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/३२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

1 चौपाटी, बम्बई २६७ हुआ। उसमें कई आदमी ऐसे निकले, जिन्होंने हत्या में हिस्सा लिया। अगर फिर भी अभी तक हम उसी रास्ते पर चल रहे हैं, तो उधर जाने में तो देश का नुकसान है ही। तो में इन लोगों को चेतावनी देना चाहता हूँ कि उस रास्ते पर जाना मूर्ख लोगों का काम है । इसका परिणाम भयंकर होगा। खामखाह दुश्मन को यह कहने का मौका क्यों देते हो कि देखो, इनकी नियत बुरी है। हमारी नियत बिल्कुल चुरी नहीं है । हम चाहते हैं कि पाकिस्तान फूले और फले । वह मजबूत बने । लेकिन हमको लूटकर मजबूत बनने का मौका हम उसे नहीं देंगे। आप जानते हैं कि सारी जूट की खेती उनके वहां पाकिस्तान में पड़ी है । जव कि सारे जूट के कारखाने कलकत्ता में हैं। अब हमने टुकड़ा तो किया, लेकिन सारे कारखाने इधर हैं और जूट उधर है । वह किसान जो जूट के सिवा दूसरा कुछ पैदा नहीं कर सकता, अब अपनी जूट को इस तरफ़ भेज न सके, और इधर के कारखाने जूट प्राप्त न कर सकें, तो दोनों की आर्थिक व्यवस्था टूट जाती । इस से उसको भी नुकसान है और हमको भी नुक- सान होगा। अब यह जो डिवैल्यूएशन ( मुद्रा का अवमूल्यन) हुआ, उसका भी यह नतीजा हुआ कि पाकिस्तान ने मान लिया इनके १०० रुपये की कीमत हिन्दोस्तान के १४५ रुपये के बराबर होगी। अर्थात् हिन्दुस्तान से ४५ रुपये ज्यादा । तो ठीक है । और यह फैसला उन्होंने इस प्रकार किया कि वे सब मुल्कों से अलग रहे । तो १०० रुपये के जूट का दाम हम १४५ रुपये देंगे, उन्हें ऐसी उम्मीद थी। तो हम ऐसे बेवकूफ नहीं हैं। हमने तय किया हम बेजा रकम नहीं देंगे। यदि ज़रूरत पड़ेगी तो कारखाने बन्द रक्खेंगे। लेकिन गलत बात नहीं मानेंगे। साथ ही हमें मालूम था कि कारखाने बन्द करने का समय नहीं आएगा । हमारे मुल्क में जूट इतना पैदा हो सकता है कि हमें बाहर से मंगाने की जरूरत न पड़े। तब देखो कि हमारी हालत क्या होती है । हम लड़ना नहीं चाहते, मुहब्बत से काम करना चाहते हैं। लेकिन इस प्रकार सीनाजोरी से काम करना हो तो उसमें सब का नुकसान होगा। सब ने कहा कि वह चीज़ हमारे मुल्क में पैदा करनी चाहिए। तो वहां से जो उनके फायनेंस मिनिस्टर हैं, उन्होंने कहा कि देखो वे कहते हैं कि हम अपने मुल्क में जूट पैदा करेंगे । देखो, उनकी नियत । तो क्या हमारी नियत ऐसी होनी चाहिए कि हम उनके पैरों पर ही पड़ते