पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/३३८

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मुझे बंगाल का दर्द है you बंगाल को हिन्दुस्तान कभी भूल नहीं सकता। इसके बाद विदेशी हुकूमत हट गई, या हटने को तैयार हुईं। तब आधी हुकूमत तो परदेशी थी, लेकिन जब आधी अपनी हुई, तब मुस्लिम लीग का एक प्रकार से आधा राज्य हो गया । आधी हुकूमत उनकी हुई, और आधी अंग्रेज की हुई। बीच में कोई हमारा हिस्सा या, तो नाम का था। लेकिन उस समय आप पर काफी मुसीबत पड़ी, और उसका सामना आपने किया । बंगाल पर आए "डाइरेक्ट एक्शन डे" को हिन्दो- स्तान कभी भूल नहीं सकता। उस दिन और उसके बाद कलकत्ता का जो हाल हुआ, उसे कौन भूल सकता है ? कैसे भूलें ? लेकिन उसमें से भी आप निकल आए। उसके बाद नोआखाली में क्या हुआ ? उसे भी हिन्दुस्तान कैसे भूल सकता है ? तो उसमें से भी आप लोग निकल आए। उसके बाद समय आया और यह कहना भी मुश्किल हो गया कि अब बंगाल का क्या होगा । पर जब ऐसा समय आया, तब गान्धी जी इधर ही थे। वे नोआखाली में गए। उन्होंने गाँव-गाँव पैदल चलकर लोगों के दुख में हिस्सा लिया, लोगों को कुछ सहारा दिया। उसके बाद वे कलकत्ते में भी कुछ रोज़ ठहरे। गुस्से में आकर, या अपने दुख के कारण गुस्से में भरे हुए हमारे बिहारी भाइयों ने भी उसी समय पर रोष प्रगट किया, और उसकी आग हिन्दुस्तान भर में फैली । यह आग उत्तर हिन्दुस्तान में ज्यादा फैली। उसका किस्सा आप सब को मालूम है । लेकिन बाद में ऐसा समय आया कि नव हमने सोचा और सारे हिन्दुस्तान की एक राय हुई। तब आप की भी उसमें यही राय थी कि यह समय ऐसा है कि हमें किसी न किसी तरह से परदेशी हुकूमत को इधर से हटाना है, और उसके लिए जो कुर्बानी करनी पड़े, सो करें । क्योंकि जब तक अंग्रेज हटें नहीं, तब तक मुल्क में शान्ति होना असम्भव था, और दोनों कौमों के बीच झगड़ा मिटना भी मुश्किल था। उस समय हमने यह निश्चय किया कि अगर हिन्दुस्तान का टुकड़ा करना ही पड़े, तो एक शर्त पर हम उसे मंजूर कर सकते हैं कि पंजाब के भी दो हिस्से होने चाहिए और बंगाल के भी दो हिस्से होने चाहिए । यह ईश्वर की लीला है कि कभी अंग्रेज ही बंगाल को तोड़ना चाहते थे, उसके दो हिस्से करना चाहते थे। तब आप लोगों ने उसको रोका था। रोकने के लिए काफी कुर्बानी भी आपने की थी। सारे हिन्दुस्तान ने तब आपका साथ दिया था। अब उसी बंगाल के दो हिस्से करने के लिए हमें खुद कहना