पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/३४०

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मुझे बंगाल का दर्द है ३०६ अभी अफ्रीका में भी हमारे लोग पड़े हुए है । दक्षिण अफ्रीका वाले भाइयों से हम सहानुभूति दिखा रहे हैं, और उनका जो नैतिक साथ देना चाहिए, वह भी हम देने की कोशिश कर रहे हैं । वे आज माने हुए अफ्रीकन नागरिक है, तब भी हम पर उनका हक है। यह एक पुराना हक है। बंगाल के यह जो दो हिस्से हुए, इस तरह से वे पुराने भाई-बन्धु कोई अलग थोड़े ही हो सकते हैं ? हमारी रिश्तेदारी, हमारा सामाजिक सम्बन्ध, हमारे आर्थिक सम्बन्ध, बे सब टूट कैसे सकते हैं? तो यह तो हम भूल नहीं सकते । लेकिन इसमें जो मुश्किलें और रुकावटें पड़ती हैं, उनको रफा करना हो, तो पहले हमें अपना घर ठीक करना चाहिए । हमारा घर अगर ठीक न हो, तो हम बाहर किसी की मदद नहीं कर संकते। तो दुख तो हमारे सामने है ही। लाखों आदमी इधर आकर पड़े हैं, कलकत्ता में पड़े हैं, बंगाल के दूसरे हिस्सों में पड़े हैं। ये सब भागे भागे यहाँ आए हैं। अपनी माल मिल्कियत वहीं छोड़ कर आए हैं, सगे सम्बन्धियों को छोड़कर आए हैं। कई लोग उनको बहकाते भी हैं, कि यह गवर्नमेंट कुछ नहीं करती; सेंट्रल गवर्नमेंट कुछ नहीं करती; प्रान्त की गवर्नमेंट कुछ नहीं करती । लेकिन इससे उनको कुछ फायदा नहीं मिलता है, उनका दुख मिटता नहीं है । मैं आपके सामने सोचने के लिए जो बात रखता हूँ, वह यह है कि हमें इन लोगों का दुख मिटाना हो, तो हमें पहले अपना घर ठीक कर लेना चाहिए । और उनका दुख मिटाना हमारा कर्तव्य है । आज हम बंगाल में, खासकर कलकत्ता में, जिस एक चीज़ को देखते उसे सारा हिन्दुस्तान देख रहा है। जिस से हिन्दोस्तान को दुख होता है वह यह है कि हर रोज कुछ-न-कुछ ऐसी बातें अखबारों में आती हैं कि कलकत्ता के किसी भाग में, किसी हिस्से में या अमुक गली में बम पड़ा है, या अमुक जगह बम फटा है । इधर कोई क्रेकर फेंका, उधर कोई ट्राम जलाई, इधर एक मोटर जला दी, उधर पुलिस को चोट लगी, इधर पुलिस का आदमी मर गया, उधर नौजवानों को पकड़ा, इधर किसी को जेल में रखा, उधर किसी ने जेल में फाका किया । ऐसी बातें हम रात-दिन अखबारों में पढ़ते हैं। तब ऐसी हालत में दुखी भाइयों का काम किस तरह हो सकता है ? जिन लोगों पर दुख पड़ा है, उनके दुख की तरफ ध्यान देना मुश्किल हो जाता है। 1 जब हम इस मुसीबत में फंसे, तो उनको कैसे ठीक करें ? बाहर के