पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/३५०

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मुझे बंगाल का दर्द है २१४ करना है । झगड़ा छोड़कर मुहब्बत और प्रेम से हमें अपना काम करना होगा। यदि हम कोई जहर पैदा करेंगे, प्रान्त प्रान्त में ईर्ष्या की आग पैदा करेंगे, फिसाद में पड़ेंगे तो उसका परिणाम यही होगा कि कलकत्ता का उद्योग कलकत्ता से चला जाएगा। जहाँ शान्ति होगी, वहाँ चला जाएगा। उससे किसी को कोई फायदा नहीं होगा, नुकसान-ही-नुकसान होगा। बंगाल के नौजवानों के प्रति मेरी पूरी सहानुभूति है । लेकिन मैं उनसे कहना चाहता हूं कि यह जो फार्म- टिव पीरियड (रचना काल) है, जो अपना चरित्र बनाने का समय है, इस समय पर उन्हें अपने हाथों का प्रयोग समझदारी से करना चाहिए । अगर हम फिसादों में पड़ जाएंगे, तो उससे कोई फायदा नहीं होगा, बल्कि नुकसान ही होगा। लेकिन मेरी शिकायत जो आज आप लोगों के सामने हैं और वह यही है कि आपको इस तरह से बिना सोचे-समझे काम नहीं करना । यदि किसी जगह पर तूफान हो, तो हमारा फर्ज है कि हम हट जाएँ। वहाँ एक ट्राम में या एक बस में पचास मुसाफिर बैठे हैं, दो नौजवान आएं और कह दिया कि सब उतर जाओ, तो सब भेड़ के माफ़िक या बकरे के माफिक उतर जाएँगे । यह क्या बात है ? यह आजाद हिन्दुस्तान के नागरिकों का धर्म नहीं है । उनका भी तो कुछ फर्छ है ? नागरिकों का भी तो कुछ हक है ? उन दो नौजवानों का कान उन्हें पकड़ना चाहिए । जब इस तरह से काम होगा, तब काम चलेगा। मैंने कल अखबारवालों से भी कहा कि अखबारवाले दो प्रकार के बाजे बजाते हैं। दो आवाजें वे एक साथ निकालते हैं। एक तो कहते हैं कि कुछ भी ठीक नहीं है, कुछ भी अच्छा नहीं है । दूसरे कहते हैं वे करें क्या ? लोग कुछ करते नहीं, गवर्नमेंट कुछ करती नहीं, पुलिस भी बुरी है आदि । लोग जेल में फाका क्यों करते हैं, यह मेरी समझ में नहीं आता। हिन्दु- स्तान में अनाज की कमी है, इस वजह से वे क्या सहानुभूति से फाका करते हैं ? या कोई और बात है ? मुझे बताओ तो सही। ये जो तूफान करनेवाले लोग है, उन्हें पकड़ने के साथ ही, उनके जेल जाने के पहले ही अढ़ाई सौ रुपया तो हम उन्हें उनका कपड़ा-लत्ता ( आउटफिट ) के लिए देते हैं। यानी हाई सौ रुपया तो उनको बखशीश देते हैं, और उसके बाद वह जेल में गया तो रोज़ ढाई रुपया उसको खाने के लिए देते हैं। रोज के ढाई रुपये ! बताइए मुझे मह क्या हुआ ? अब यह स्फ्यूिजीज़ की बात लीजिए । बंगाल में ऐसे कितने