पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/३५३

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३२२ भारत की एकता का निर्माण की सलाह देते हैं, उनके खोसे में से नहीं, हमें अपने आप के खीसे से ही उसे देना पड़ेगा। आप को याद है कि ३० लाख आदमी इधर भूख से मर गए । अब इधर आजादी के बाद हमने कुछ भी बिगाड़ किया हो, कण्ट्रोल किया हो या रिश्वतखोरी देखी हो, कितनी भी बुराई की हो, लेकिन इन तीन सालों में हमने हिन्दुस्तान में किसी को भूख से नहीं मरने दिया । आपको समझना चाहिए कि हम कहाँ से अनाज लाएँ ? करोड़ों मन अनाज बाहर से लाते हैं। उसका कितना खर्च पड़ता है, यह आपको मालूम नहीं। करोड़ों रुपये उस पर खर्च करने पड़ते हैं। तो हम अपने किसानों को समझाएं कि हमारे मुल्क में जो अनाज पैदा होता है, उसका हम ठीक तरह से उपयोग करें। जो हमारे दुखी लोग हैं, जिसके पास अनाज नहीं है, जैसा कलकत्ता शहर है, वहाँ अनाज भेजें । कलकत्ता शहर में तो बाहर से ही अनाज आएगा। इधर कौन अनाज पैदा करेगा। लेकिन कलकत्ता के आसपास जो किसान लोग हैं, वे अनाज पैदा करते हैं । उनको समझाना चाहिए कि कलकत्ता के लाखों आदमियों को अनाज देना उन्हीं का काम है। अगर वे लालच करें, उसके लिए ज्यादा कीमत माँगे, वह कलकत्ता को देनी ही पड़ेगी। मगर आज कलकत्ता की हालत ऐसी नहीं है । बहुत थोड़ें लोग ही ऊँची कीमत दे सकते हैं । बाकी ज्यादातर तो मध्य वर्ग के लोग हैं, जो बहुत ही दुखी है। बेकारी तो है ही, महँगाई तो है ही। तो आज सब हिन्दुस्तानियों का फर्ज है कि वे देशभर का थोड़ा-थोड़ा दुख आपस में बाँट लें। दो साल तक अगर हम बेंटवारा करके दुख उठा लें, तो पीछे हम सब सुख के हिस्सेदार होंगे। यदि आज कलकत्ता गिरा, तो बंगाल गिर जाएगा। फिर कौन जिन्दा रहेगा? लेकिन बंगाल को अपनी असली जगह पर आ जाना चाहिए । हिन्दु- स्तान की जो नेतागिरी उसी के पास रही, वह उसे लेनी चाहिए। इस प्रकार हमारा काम चले, तो सारा हिन्दुस्तान ठीक हो जाएगा । आज झगड़े का समय नहीं है । मैंने कांग्रेस में काम करनेवालों से भी कहा कि मेरी आप लोगों से यह आखिरी अपील है। अब आप सब आपस में समझ जाइए। यह झगड़े का समय नहीं है । अभी हमको मिनिस्ट्री मिली तो क्या, न मिली तो क्या ? सारी उम्न हमारा धंधा तो दुख उठाने का था। लोगों के लिए जेलखाने जाने का और दुख उठाने का। जब लड़ाई चलती थी, तो आप ही ने कितना दुख !