पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/३६५

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(२७) हैदराबाद का स्वागत समारोह ७ अक्टूबर, १९५० भाइयो और बहनो, जब से मैंने हैदराबाद स्टेट में प्रवेश किया, तब से मैं आप लोगों के प्रेम का अनुभव कर रहा हूँ। जिस प्रेम से और जिस भाव से आपने मेरा स्वागत किया है, उसके लिए मैं आपका शुक्रिया अदा करता हूँ। हैदराबाद सिकन्दरा- बाद की म्युनिसिपलिटी और हिन्दी प्रचार सभा की तरफ से मुझे जो मान- पत्र दिया गया, उसके लिए मैं इन दोनों संस्थाओं का भी आभार मानता हूँ। मुझे मानपत्र देने की कोई आवश्यकता नहीं है और न इसका अभी कोई समय ही आया है । अब आदमी दुनिया छोड़कर चला जाता है, असली मानपत्र तो उसके बाद मिलता है। क्योंकि कोई आदमी आखिर दिन तक कोई गलती न करे, तब उसकी इज्जत रहती है । लेकिन यदि आखिरी उम्र में दिमाग पलट जाए, तो सारी करी-कराई ही खत्म हो जाती है । इसलिए हमें ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि आखिर दम तक हम शुद्ध और निःस्वार्थ भाव से जनता की सेवा करते रहें, ऐसी ताकत हमको मिले मानपत्र में मेरे बारे में जो बातें लिखी है, उसके बारे में मैं आपका समय नहीं लूंगा। लेकिन चन्द बातें हैं, जिनका जवाब में आपको देना चाहता -