पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/४०

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लखनऊ ३५ . अच्छी बात है । अब अपनी गवर्नमेंट को मैं सलाह दूं कि अजी जफरुल्ला साहब कहते हैं कि आप वहां क्यों गए? हिन्दुस्तान की सरकार को वहां जाने की क्या जरूरत थी? वहाँ नहीं जाना चाहिए था । आप को अपनी अरजी वापस ले लेनी चाहिए। फिर आपस में लड़ लेना इस से अच्छा है । ठीक है। यदि वह चाहते हैं तो हम अपनी अरजी वापस ले लेंगे । मगर हमें बताइए कि दूसरा क्या रास्ता होगा? फिर तो हमें स्यालकोट और लाहौर होकर जाना पड़ेगा। यदि वह पसन्द हो, तो फैसला करना अच्छा है । लेकिन इस तरह से कहना और बार- बार सरासर झूठ बोलना मेरी समझ में नहीं आता। यह किस तरह का पाकिस्तान चलेगा? तो मैं कहता हूँ कि पाकिस्तान गिरेगा तो, इसी तरह से गिरेगा। आपको गिराने की हमारी ख्वाहिश नहीं है । लेकिन बार-बार आपको तरफ से जो बातें कही जाती हैं, वे मेरी समझ में नहीं आतीं। जब हम आपस में बैठ कर बात करते हैं, तो कहते हैं कि हाँ भाई, रेडर्स ( आक्रमणकारी) लोग काश्मीर में गए हैं, वे फ्रंटियर से गए हैं। उनको हम समझाने की कोशिश करते हैं, लेकिन वे मानते नहीं हैं । आज तो हम कितना भी उन्हें कहें, लेकिन वे लोग नहीं मानेंगे । उधर बाहर दुनिया से कहते हैं कि हम कुछ भी नहीं जानते । हमारा इसमें कुछ भी हिस्सा नहीं है । हमने कहा कि तुम्हारे घर में से होकर वे उधर चले जाते हैं। तुमने वहां से उन्हें रास्ता करके क्यों दिया? -आप सब सामान उन्हें क्यों देते हो? यह क्या बात है ? तो वह कहते हैं कि तुम हमको कुछ दो, तो हम उनको समझा दें। अब इस तरह से जो हालत बन गई है, उसके लिए मैं हिन्दुस्तान के मुसलमानों से एक सवाल पूछना चाहता । आप लखनऊ में जमा हुए । आपने बहुत बड़ा जलसा किया। ५६ हजार मुसलमान यहाँ जमा हुए। आप सब लोगों की अगर यह राय है कि पाकिस्तान काश्मीर में जो कुछ कर रहा है, वह गलत है, तो क्यों आपकी जबान खुलती नहीं है ? आप क्यों बोलते नहीं हो कि यह गलत रास्ता है ? जब तक मुसलमान हिन्दुस्तान में इस तरह से नहीं बोलेंगे, तब तक हमारा काम बिलकुल मुश्किल हो जाता रहेगा। जितने वहां बुरे काम होते हैं, उनके बारे में यदि हिन्दुस्तान के मुसलमान नहीं बोलेंगे, खुले दिल से उसे बुरा नहीं कहेंगे, तो फिर उन्हें यह शिकायत नहीं करनी चाहिए कि उनकी वफादारी की तरफ किसी को अन्देशा है । तब हम से पूछने की कोई जरूरत नहीं है ।