- लखनऊ ३६ में, मैं जरूरत की चीज़ भी समझता हूँ। यदि हिन्दुस्तान गान्धी जी के रास्ते पर चला होता, ( जैसा कि हमें उम्मीद थी और हमारी ख्वाहिश भी थी कि हम उस रास्ते पर चलें ) तो दूसरी बात थी । लेकिन हम उस रास्ते पर चल नहीं सके। अब अगर उनके रास्ते पर भी न चले और दुनिया के रास्ते पर भी न चलें, तो हम खड्ड में गिर जाएंगे। इसलिए हमें एक रास्ता पकड़ लेना है । तो आज हिन्दुस्तान को और दुनिया की हालत ऐसी है कि हमें पुलीस और मिलिटरी के ऊपर भरोसा करना पड़ता है । इस हालत में हमारी पुलीस और हमारी मिलिटरी पक्की होनी चाहिए और हमारे नौजवानों को उसकी तालीम मिलनी चाहिए। उसके लिए हम सोच रहे हैं कि हमें क्या करना है। उसमें आपको भी पूरा मौका मिलेगा। लेकिन यह चाकू या लाठी की लड़ाई छोड़ दो और किसी की पीठ में खंजर मारता भी छोड़ दो। उससे कोई फायदा नहीं है । उससे न हमारा चारित्र्य बढ़ता है, और न हमारी इज्जत बढ़ती है। बल्कि उस से हम गिर जाते हैं। लेकिन अगर हमें लड़ना ही पड़े, तो उसके लिए हमें लड़ाई का मौका देखना होगा और लड़ाई का तरीका ठीक तरह से पसन्द करके लड़ाई की सामग्री बनानी होगी। आज के हालात में मैंने यह सोचा कि जब पाकिस्तान का ढंग इस प्रकार का चल रहा है, तो हमें क्या करना है। मैं अपने नौजवानों को बड़े अदब से कहना चाहता हूँ कि अब जितना हिन्दुस्तान हमारे पास है, उसे सौ फी सदी एक बनाओ। पहले भी हमने परदेसियों के पास हिन्दुस्तान को क्यों गुमाया था? हमारे मुल्क पर और लोगों का राज्य क्यों हुआ था? हमारी बेवकूफी से हुआ था। ऐसी बेवकूफी अब फिर न हो, वह हमें देखना है । तो हमारे नौजवान आज जो काम कर रहे हैं, उसमें मैं कई बेवकूफियाँ देखता हूँ। जो हिन्दुस्तान बाकी बच रहा है, इसको हमें अगर एक गठरी में बाँधना हो, पूरी तरह संगठिता करना हो, तो हमें उसमें अलग-अलग गिरह-गाँठें नहीं बनानी चाहिए । हमें सबको एक करना है। अब यहाँ अलग-अलग सम्प्रदाय का काम नहीं है। देश में जितनी रियासतें हैं, उनको भी हमें एक कर देना चाहिए। तो मेरी कोशिश तो सदा यही रही। पाकिस्तान बननेवाला था, सो बन गया; उसे अगर हमने नहीं बनाया तो कम-से-कम बनने तो दिया। तो उसमें हमें झगड़ा नहीं करना चाहिए। जो हिन्दोस्तान अब है, वह हमें ठीक करना चाहिए । पाकिस्तान के अलावा एक अन्य टुकड़ा भी होनेवाला था, जो उस से