पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/५२

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लखनऊ १७ और इस सब के लिए धन चाहिए। अगर यही कहते रहोगे कि कोई पैदा ही न करो, झगड़ा ही करो, तो कौन फौज रक्खी जा सकेगी और किस तरह से हमारा काम चलेगा? आजादी के पहले चार महीनों में ही हमने इतना काम किया है । अब हम मुल्क को ठीक कर, साफ कर, आगे बढ़ना चाहते हैं। इस काम के लिए दो चीज़ करो। एक तो यह कि जितने मुसलमान इधर पड़े उनको चैन से रहने दो, उनसे झगड़ा न करो। क्योंकि फिर हमारा चित्त उसमें जाता है। हमारा अटेन्शन ( ध्यान ) उसमें डाइवर्ट होता (बँट जाता ) है । तो उनको चैन से रहने दो । अगर उनमें से किसी की नीयत अच्छी न होगी, तो वह पकड़ा जाएगा । उसमें आपको डर नहीं रखना चाहिए । हम जाग्नत हैं । हम पागल लोग नहीं है। हम समझते हैं कि कहाँ चूहा पड़ा है, और कहाँ चोर पड़ा है। वह सब हम देखते हैं। तो आपको इस तरह से हमको तंग नहीं करना चाहिए, हमें मजबूर नहीं करना चाहिए । दिल्ली हमारी राजधानी है, उसमें हम राज करते हैं, तो जो चन्द मुसलमान पड़े हैं, जो लोग उन्हें तंग करते हैं, वे हमारी इज्जत पर हाथ डालते हैं। उसका मतलब यह होता है कि हम राज करने के लायक नहीं हैं । राजधानी में जो लोग बाहर से आए हैं, एम्बेसेडर ( राजदूत ) आदि परदेसी लोग आए हैं, वे सब देखते हैं कि यह राज कैसे चलेगा? तो इस तरह से हमें नहीं करना चाहिए। मैं आप से कहना चाहता हूँ कि हमारी प्रेस्टिज ( रोब) हमारी इज्जत कुछ बढ़ने लगी है, उसमें किसी को ठोकर नहीं लगानी चाहिए। उससे आपको नुकसान ही होगा, कोई फायदा नहीं होगा। तो हिन्दुस्तान में जो मुसलमान पड़े हैं, उनको रहने दो और जो मजदूर लोग हैं, उन्हें काम करने दो । हाँ, आप कहते हैं कि मजदूरों को पैसा मिले, उनकी जितनी जरूरतें हैं, वे पूरी पड़नी चाहिए, तो इस काम में मेरा आपको पूरा साथ मिलेगा। मजदूरों को जो इन्साफ से मिलना चाहिए, वह उन्हें जरूर मिलना चाहिए । एक हफ्ता पहले हमारे वहा सेन्ट्रल गवर्नमेंट ( केन्द्रीय सरकार ) ने दिल्ली में एक कान्फ्रेन्स बुलाई थी। हमारे इन्डस्ट्री के मिनिस्टर डा० श्यामा- प्रसाद मुकरजी ने इस कान्फन्स में हिन्दुस्तान के सब उद्योगपतियों को बुलाया था और लेबर में काम करनेवाले सब लोगों को भी बुलाया था। सब ने मिलकर गवर्नमेंट के साथ एक फैसला किया कि तीन साल का एक ट्रस ( सन्धि )