पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/७०

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चम्बई, चौपाटी जाकर कबूल करके आया है और आप कहें, कि नहीं हमें तोट्र स नहीं माननी है । एक दिन की स्ट्राइक तो हम जरूर करेंगे। अब हम क्या करें? मुझे बड़ा अफसोस हुआ कि जिन लोगों पर हम आखिर को गवर्नमेंट चलाने का बोझ डालनेवाले हैं, वह इसी तरह से काम करेंगे, तो कौन-सी गवर्नमेंट चलेगी। और ऐसा ही रहा तो हिन्दुस्तान के स्वराज्य का क्या भविष्य है ? हमारे हाथ अब कहाँ तक यह चीज रहनेवाली है और कहाँ तक हम इसे रख सकते हैं ? तो हमको बड़ा दर्द हुआ। हो सकता है कि उनका पूरा काबू मजदूरों पर हो । मुझे तो यह कभी समझ में नहीं आया कि इस प्रकार कोई लीडरशिप कैसे सिद्ध होती है, क्योंकि मजदूरों को लीडरशिप तो तब सिद्ध होती है कि जो चीज मजदूरों को पसन्द न हो, वह चीज उनसे करवा कर दिखाओ। वह चीज अहमदाबाद में ही होती है । दूसरी जगह पर नहीं होती। और अहमदाबाद में भी यदि हम सावधान नहीं रहेंगे, तो वहां से भी चली जाएगी। आज अखबार में यह पढ़कर मुझे बहुत दुख हुआ कि वहाँ के स्वामी नारायण के मन्दिर को हरिजनों के लिए खोलने से जब वहाँ के महाराज ने इनकार किया, तो सारी मिलें बन्द हो गई। देखो, हमारा दिमाग कहाँ तक चलता है । एक मन्दिर खोलने में कोई आर्थिक सवाल या मजदूरों की तहरीक का भी कोई सवाल नहीं है । उसके लिए बस एक दिन की डेमौस्ट्रेशन (प्रदर्शन) करो। उसमें सोशिलिस्ट, कम्यूनिस्ट सबको मिला लो । करो हड़ताल । कपड़ा तो है नहीं मुल्क में। गरीब लोग भूखे मरते हैं। उससे किसी को फायदा नहीं है। इससे अहमदाबाद में मजदूरों का संगठन इतना गिरा कि मुझको चोट लगी कि यह क्या हुआ। वहाँ कांग्रेस यह क्या करती है, यह मुझे कांग्रेस को भी कहना पड़ा। इस तरह जो स्ट्राइक हो तो कांग्रेस मारे हाथ से चली जायगी, यह मेरा निचोड़ है । क्योंकि मैं इस तरह से काम नहीं करता। थोड़े दिन हुए, में कलकत्ते गया वहाँ भी यही तरीका है। पाँच तारीख को एक दिन की स्ट्राइक करो । उसमें कम्यूनिस्ट, सोशलिस्ट, एंटीकांग्रेस जितने थे, सब मिल गए। एक दिन की स्ट्राइक करो। मैं वहाँ गया तो, दस-बारह लाख आदमी जमा हो गए । तीन तारीख को मैंने मीटिंग की। बहुत लोग आए। मैंने सब लोगों को समझाया कि क्या आप पसन्द करते हो कि स्ट्राइक हो और . -