पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१५८

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मालयेके परमार। । अन्तमें भोजने म्यौलुक्प पर विजय पाई, यह बात उदयपुर (ग्वालि पर ) की मशस्तिने प्रकट होती है। प्रपन्धचिन्तामपिकारने लिखा है कि भोजन गुजरात-अनदेयाड़ाके राजा भीमकी राजधानी पर जय भीम सिन्धु देश जीतने में लगा था, अपने जैन सेनपाति कुलचन्द्रको सेनासाहत हुमा करने भेजा। इसकी चही जात ६ । वह लिसित विजयपन लेकर बाराको लीटर । भोज उससे सादर मिला। परन्तु गुजरातके प्रपन्ध-लेखकेने इसका चैन नहीं किया। कुमारपालक पड़नेगरवाली प्रशस्ति में लिखा है कि एक बार मालवेकी राजधानी मारी गुजरातके सवारों द्वारा छीन ली गई थी। रामेश्वरकी कीर्ति कौमुदीमें भी लिखा है कि चौलुमय भीमदेव ( प्रथम ) में मोज़ा परागय करके उसे पक लिया था। परन्तु उसके गुणका पास करके उसे छोड़ दिया ! सच है, इस अपमानका बदला लेने के लिए मोजने चुलचन्द्र समन्य भेगा हो । पीछेमें इन दोनॉमें में हो गया था । यहाँतक कि भीमने हार्मर १ दामोदर ) को राशदूत ( Armbassador } बनाकर भोजके दरबारमें भेजा था। प्रबन्यचिन्तामगिसे यह भी शत होता है कि जब भीम भेजने बदला लेने का कोई और उपाय न सूझा तत्र आधा बाप देनेका वादा करके छाने को मिला लिया । फिर दोनोंने मिलकर भजपर चाई की और धाराको बरबाद करके छह झी । परन्तु इस चढ़ाई अधिक लाभ कैप्पहीने इछाया । मदनी बनाई ‘पारिजातमञ्जरी' नामक नाटिकासे, जो धारकै राम अर्जुनजमके समयमें लिखी गई थी, प्रतीत होता है कि भोजने युवराज { दुसरे } के पौत्र गाई १३५, जो प्रतापी होनेके कारण विक्रमादित्य कहलाता था, हराया।