पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१६८

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मालवेकै परमार। अर्थात कलशका भाई लोहका स्वामी बङ्गा प्रताप और भोजको तरह कीर्तिमान था। | इन फसे प्रकट होता है कि कृश, किर्तिपात र वरुण, भौज समकालीन थे। डाकटर बुलरने भी जितकें पूर्वोक्त लोकके उत्तरार्धमें फहै हुएतस्मिन्क्षणे'--इन शब्दसे मोजो कलशके समय तक जीवित मान कर वनमाइवेबचरितकें निम्नलिखित श्लोक अर्थ गडबढ कर दी है:-- मौनमाभा ख न लैस्तस्य ग्राम्यं नरेई. सुप्रश्न किमिति भदता भागन्तुं द्वा जास्मि । यस्म रोमशिखरकोपाराबताना । मदिव्याजादिति सकणं व्याज्ञहरेद मारा ॥ १६ ॥ अर्यात--पारा नगरी दरवाजे पर आँटै हुए कबूतरो आवाज द्वारा मानो जिल्लणसे ( जिस समय वह मध्यमारतमें फिरता था) बोली कि मेरा यानी पोज है, उसी घराबरी कोई और राजा न कर सकता। उसके सम्मुख तुम क्यों न हाजिर हुए । अर्थात् तुमको उसके पास आना चाहिए । परन्तु वास्तबमैं उस सगस गोत्र वियमान न था। अतएव ही अर्थ इस कृका यह है कि-मारा नगरी नौली कि बड़े अफसी बात है कि तुम भोजके सामनै, अर्थात जब मह दिन था, न जाये । यदि जाले सो चह तुम्हारा अपय ही सम्मान करतः ।। राजा फला १८६३ ईसी (वि० सं०११२०) में गई। पर बड़ा और १०८५ ईसा ( वि० सं० ११४६ ) स विद्यमान रहा 1 अतएव यदि राजतरंगिठे टोके पर विचार किया जाय तो वि० सं० ११३८ (१९६३ईसी) कै पाद तक भोजको विद्यमान मानना पड़ेगा। इस ट्रोफद्धे आधार पर हाट घूझ और इटीनने छलके समय मौन जयित होना