पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१६९

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भारतके प्राचीन राजवंशमाना है । तु राजतरणिका फत्त मौनसे बहुत पड़े हुगा था । इससे उसने गड़बड़ कर दी है। ताम्रपत्रों और शिल्लालेखे सिवा है कि भोजका उत्तराधिकारी जयसिंह वि० सं० ११ १२३ में विद्यमान था और जसका उत्तराधिकारी उदयात्रुित्य वि० सं० १११६ में । अतएव कलशके समयमें मोजका होना स्वीकार नहीं किया जा सकता । फिर, भोज देहान्त-समय में भीमदेव विद्यमान या । यह यात डाक्टर बूलर भी मान हैं। सम्भव है, भेजकै याद भी वह जीवित रहा हो । यदि भीमका देहान्त वि० स० ११२० में हुआ ते भीमके पीछे मौजी होना उनके मतसे भी असमय सिद्ध नहीं। | उदयपुर (ग्वालियर ) की प्रशस्तिमें निम्नलित टोक है, जिससे भोजके वृनाये हुए मदका पता लगता है.--- केदार- रामनाथ [ रागगरा। मुरा ३ प ध य समन्तामाई | बगनी चार ॥ १० ॥ अपतु मोनने पृथ्वी पर केदारे, रामेश्वर, सोमनाथ, सुंडीर, काळे १ महाकाल), अनल और रुद्रके मन्दिर बनवायें । भीगी भन्दा हुई भारी भोजशाला, उनके भाट र मन्दिर, मोपाठक भोजपुरी झील और काश्मरका पापसूदन-कुरा अय तर्क प्रसिद्द हैं। राजतराणीका ६ लिखता है-*पद्मराज नमक पान बेचनेवालेमें, जे कारकै राजा अनन्तवको प्रतिपान शा, मालवे राजा भोजके में हुए मुगण-समूहसे यापसूदन भटेवर ( फोटैर-काश्मीर) का कुण्ड मनवायर । मज्ने प्रतिज्ञा की थी कि पपइनके इस कुण्ड न्य मुस्। ॐ।।। अतएव पद्मजने यहा। उस से भरे हुए फाचके फलश पलु-धाते रह कर माफी उस प्रतिष्ठाको पूर्ण किया। पापदभ६ ( कपटेश्वर महादेव ) कमरमें कोटेर पके पास,