पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/२३५

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भारतके प्राचीन राजवंश विंग्रहपाल तीसरेके समय मगद्ध (दिनाजपुर जिले में मिले हुए ताम्रपत्नसे प्रकट होता है कि * महीपालक पिताफा राज्य सरोने न लिया था। उस राज्यको महींपाने पछिमें हस्तगत किया और अपने भुजबलझे लड़ाईके मैदानमें शत्रुओंको हरा का इनके सिर पर अपना पैर रखा । । महीपालके समयकी दूसरा ताम्रपत्रे दीनाजपुरमें मिला है। इस नाके राज्यके पाँचवें वर्षकी लि हुई " अष्टसाहसिक प्रज्ञापारिमता " नामक एक बौद्ध पुस्तक इस समय केम्बिनके विश्वविद्यालयमें है और ग्यारवें वर्पको एक शिलाले बुद्धगयामें मिला है। परन्तु यह कहना कृठिन है कि मैं दोनों महीपाल, पहले, समय है। अथवा दुसरेकै समयके । इसके पुत्रका नाम नपपाल या । १२-नयपाल ।। यद् गहवाल ( पहले ) का पुत्र या 1 उसके पी यह उज्यका अधिकारी हुआ। इसके राज्यके चैव मर्पका लिखा हुआ धरक्षा नामक एक ग्रन्य इस समय केम्ब्रिज-विश्वविद्यालयमें है और पन्द्र वें वर्गका एक शिलार युदगपाहें मिला है । | आचार्य-दीपा श्रीज्ञान, जिसका दूसरा नाम निशा था, ५६ नपपालका समकालीन था । इस अपायके एक शिष्यों से प्रफळ होता है कि पश्चिमकी तरफ से राजा ने मगध पर चढ़ाई की थी । यद्यपि मूलमें कार्य feणा हे तपाद शुद्ध पाई कर्ण र उचित प्रतीत रोता है, क्योंकि हैहयोंके लेोंसे सिद्ध है कि चेदिके राजा फर्णने बङ्ग देशपर चई ६१ ६ः । नया पुत्र विमपाल ( सरे ) कर्ण| }nd. Ant, Ft. xv,g 18 ११). h. A, B, Yat ai, | | 83. {}A, E: 1. Yel, IL, p. 15, And Ind. All, Fa, IS 114}. In A, E, for 1900 ph,129-115.