पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/२४४

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सेन-बंश । जहालसेनके २५० वर्षे बाद हुआ था । इससे स्पष्ट है कि सेनवंश | राजा बालन वैद्य बालसेनसे पृथक् थी और उसके समयको बहाल चरित भी इसे बच्चालचरितसे जुदा था। दोनों का एकही नाम होने से यह भ्रम उत्पन्न हुआ है, और, जान पड़ता है, इस मुमसे उत्पन्न हुई किंवदन्तीको सच समझकर अबुलफजलने भी सेन-वंशियोंको वैद्य लिंब दिया है । उनळे शिलालेखे से उनके चन्दबी होनेके कुछ प्रमाण नीचे दिये जाते हैं१-राजनगापिति-ऐन-कुलकमल विकास-भास्कर मवेशप्रदीप । -भुवः झालाचतुरचतुरधिल परंतागा माऽजनि विजयसेन शिकुले ।। इस वंश रोजा पहले कट कर्क तरफ रहते थे। सम्भव है, वहीं पर वे किसके सामन्त राजा हो । परन्तु वहाँ से हटाये जानेपर पहले सामन्त सेन वइदेशमें गया और गड़ाके तटपर रहने लगा। बहुतेका अनुमान है कि वह प्रयम नवपमें आकर रहा था। इनके ज्य-कालमें वृद्धिधर्मका नाश होकर दिक धर्मक्का प्रचार म ।। १-सामन्तसेन । दक्षिणके राजा वीरसेनके वशमें यह रजिा उत्पन्न हुआ था। इससे इस दशकी शूबिछे पंजाबी मिलती हैं । इटर राजेन्द्रलाल (मनका अनुमान है कि वइदेशमें कुलीन झणको लाने रसैन नामका राज्ञा यही वीरसेन है; क्योंकि शूर और और दोनों शब्द पर्यायबाचीं है। परन्तु इतिहासत्ते सिद्ध होता है कि वन्देशमें शूरसेन (१) m. 4 5 15६ } 13 १३] भर्तमगर, अक १५ (३) Ep 11, 3, 50}-B - -