पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/३२५

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रणथम्मरके चौहान। भाव सुलतान रणथंगोरफी परगना अपने भाई उल ( उलाख ) ॐ संप कर दिछी लौट गयो !” • | हम पहले हम्मीर-महाकाव्यसे सुलतानकी चदाईंझा हाल उद्धृत कर चुके हैं। उसमें रणर्यंभौर पर लाइनको तीन बढ़ायका वर्णन है । परन्तु फार सवारीसे उद्धृत किये हुए वृत्तान्तसे केवल दो 'धार चदाई होनैका पता चलता है। अतः इक नीसरी घाई अलाईनकी न होकर जलालुद्दीन फरोज विलकी हो? । इस बा१झी पुष्टि फरक्षाके निम्न लिखित लेसे होती हैं:| ** हि० स० ६९० (वि० स० १३४८-६० स० १२९१ ) में सुलतान जलालुद्दीन फरजं खिलजी वैपाथंभौरी तरफ फसाद मिटानके इरादे से रवाना हुआ । परन्तु शञ्च थंभोरके किले में घुस गया । इसपर सुलतानने लेिकी परीक्षा की। पर अन्तमै च निराश होकर इनकी तरफ चला गर्यो । " चन्द्रशेखर पाजपेयी नामक फविनै हिंन्दीमें इम्भीर-बङ नामक काय बनाया था। इस कविका जन्म वि० सं० १८५५ ओर देहान्त विः सं० १९६२ में हुआ था। उसके रचे काव्यमें इस प्रकार लिखा है--

  • अलाउद्दीनकी मरहटी बेगम साप मी महिमा नाम* मंगल सरका। गुप्त प्रेम हो गया था । अग बादशाहको इसका पता लगा तब मी महिमा मागकर हमीरी इशरणमें चला आया । अलाउद्दीनने इन

ना हुमसे फट्यापा ६ इक मीर मेरे पास भेज दो। परन्त हुमरने शरगतकी रक्षा करना उचित ज्ञान उप्तके देने से इनकार कर दिया । इसपर सुलतान बहुत कुछ हुआ और उसने हमीरपर (१) Brigs: Friehta, Val, I, F, 337-345, (३) Big Firiti Yel, I, P, 101.