पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/३३८

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नाडोल और जालोरके चौदाग । १० स० ४१४ (वि० सं० १९८०-६० स० १०२३) में महमद गजनवीमें सोमनाथ पर चटाई की थी। उस समय यह नाडोल मार्गको अणहिलाहे होता हुमा सोमनाथ पहुँचा होगा । यद् यात ठौर कृत राजस्थान से भी सिद्ध होती हैं। | नाटोलमें हरे शिवमन्दिर हैं। इनमें एक यासलेझर (आसपाहेश्वर) का और दूसरा गणदिलेश्वर मन्दिर कहलाता है, अतः पहला भएकै लेके जश्वपालका और दूसरा दुग यहि नपाया हुआ गर । रायब।दुर पक गौरीशंकर ओझाका अनुमान है कि यह 21 शायद (बंगराजका ही दूसरा नाम होगा और लेपमें गलस डा।गे पढ़ें लिप्त (३या गया होगा। गौफेसर डी० आर भरफरेने उपमें हैं। कुंके लेके आयार पर महेन्द्र मात्र अश्वपाल, अहिले र अलिक क्रमशः राशी होना माना है, परन्तु । ह र को; माग न ले सर्न सके इस विषयमें निश्चयपूर्वक छ; नहीं करा ना त । अणके दो पुत्र थे-वालप्रसार और जेन्द्रराज । ७- वासाद् यह अणहिला पुर और उत्तराठी था । इसन गीगदेय इथगको मजबूर के उससे इरादेषको हुट दिगा था । फरार कीझार्न साइके मनानुमर इस कुष्णदेव के परमार राजा धुक पुल कृष्णराज द्वितन्य तात्पर्य है। नाडोल एक तापत्रमें यालादा नाम न ३, परन्तु दूरा ताम्रपत्रमें और बाड़े बेसमें इसका नाम दिया है। ८-जेन्द्रजि । यह जगह हा पुट्स और अपने बड़े भाई घ साद। उत्तरधिकारी था। धार्के लैस में इसका नाम राज लिंग: है और इसमें (१) राजरयाग मौन १, पत्र ६७६ । ३८५