पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/३४४

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नाडोल और जालोरके चौहान । १४-आल्ह्ण देव ।। यत् अाराजका पुत्र और कटुकराजको छोटा भाई गा | सुंधा माता मन्दिरके द्वितीय शिलालेखमें लिंसा है कि इसमें नाडोलमें महादेवको मन्दिर बनवाया था और हर समय गुर्जरराधिपति| इसकी सहायतार्की आवश्यक पर्न थी । तथा इस सैनाने सौराष्ट्रपर चदाई की थीं । वि० सं० १९८९ माघ चदि १४ शनिबारका एक लैस किराहूसे | मिंका है। इसमें शिक्षा है कि शाई भरी ( समिर ) के विजेता कगारपालके विजयराज्यमें स्वामी कृपा प्राप्त किया है किराडू (किराकूप ), राधा ( लाट ) और शिव ( शिवा ) का राज्य जिसने, ऐसा राजा श्रीजरूणदेव अपने राज्यमं प्रत्येक पक्षकी अष्टमी, एकादशी और चतुर्दशी के दिन जीवहिंसा न करनेकी आज्ञा देता है । " उपर्युक्त हेयरी पकट होता है कि यदि चालुक्य कुमारपाल इसके पूर्वतिकारियों से अप्रसन्न हो गया था और उनको हटाकर किराडूपर उसने अपने दंडनायक विनलदेशको भेज दिया था, तथापि उतने आल्हुणदेवसे प्रसन्न होकर उसे उसके वंशपरम्परागत राज्यका अधिंमा बना दिया था। प्रचन्म-चिन्तामणिमें लिखा है कि कुमारपालने अपने नापते उदयनको सौराष्ट्र ( सोरठ-कायावाड़ मेहर ( मेर } राजा सौसर पर हमला करनेको भेजा था ! इसे युमें कुमारपालका उक्त सेनापति भारा गया और फीज हारकर लौटना पड़ा। कुमारपाल-चरितसे प्रकट होता है कि अन्तम कुमारपालने उपर्युक्त समर ( सोसर ) को हर उसकी जगढ़ के पुत्रको.ज्यका स्वामी बनाया । सम्भवतः इस युद्ध में अपने ही खास तौरपर पराकम प्राशहर का हो । म किंग्छे । हे राष्ट्रको दिसा