पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/३५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

जालोरके सोनगरा धैन । यह घटना हिजरी सन् ६०७ १ वि० स० १३६८-६० स० १२११ के निकट हुई थी। उपर्युक्त लेखों से भी उदयसिके और मुसलमानों के बीच युद्धको होना प्रकट होता है। परन्तु मूता नैणसीने अपने इतिहममें लिया है कि यद्यपि सुलतानने उदयसिंह पर चढ़ाई फी तथापि उसे वापिस लौटना ५ । दूधा पहाड़ाके छेसमें भी इसे तुरुकाधिपके मद्को तोड्नेवाला लिया है । अतः फार तबारियोंमें जो सुलतान द्वारा जाडोर-विजयका वृत्तान्त लिखा गया है। वह बहुत कुछ कपोलकल्पित ही प्रतीत होता है और अगर वास्तवमें सुतानने उदयसिंहका अपने अधीन किया होगा तो भी केवल नाम मान्न के लिए ही । इसका एक यह म सबूत है कि यदि सुलतानने पूर्ण विजय प्राण की होती तो फारस तवारीसमें यहाँ के मन्दिर आदि नष्ट करनेझा उल्लेख भी अवश्य ही होता है। उपर्युक्त सुंघाके लेने से गुजरात राजासे अजेय लिया है। निघालेसित घटनाओंसि इस यात पुष्टि होती हैं. कार्तिकीमें लिखा है कि जिस समय दक्षिणते याद्वाना सिंणने लवणप्रसादपर चढाई की, उस समय मारवाडके भी चार राज न मिल उसपर हमला किया। परन्तु यधेले जाने उन्हें वाविह हौटनेको बाध्य किया 1” । pीर-मबुमर्दन काव्यमें लिखा है कि 4 नि1 समय लवणपराव* पुत्र धीरधवलपर एक तरफसे पिणने, दूसरी तरफसे मुसलमानों और तीसरी तरफसे मालकै राजा देवपाळने चढाई की, उस रामय सौमसिंह, अव्याह र धारावर्षे नामके मारवाडके राजा भी मुसलमान सेना सातार्य तैयार हुए, परन्तु वीरायलने चढाई कर उन्हें अपनी ३६५