पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/६१

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अन्नपचंश। महाक्षत्रप था । परन्तु ॥ ४२ ११० से ११२ सक अह फिर क्षत्रप हो गया था और श६ सु० ११३ से ११८ या ११५ सक दुबारी महाक्षत्रप रहा था। । अब तक इसका कुछ भी पता नहीं चला है कि सिंह महाक्षत्रप होकर फिर क्षेत्र क्यों हो गया । परन्तु अनुमानसे ज्ञात होता है कि सम्भवत् जामदामाने ठरु पर विजय प्राप्त करके उसे अपने अधीन कर लिया होगा। अयवी यह भी सम्भव है कि यह किसी दूसरी शक्तिके इस्ताक्षेपको फल हो । | रुदास क्षत्रप उपाघिबाले १ सय ११० के दले चौके किम जल्टी तरफ कुछ फरक है । अत् चन्नुमा, जो केि इस यशॐ प्रजाई सिङ्गों पर चैत्यकी थाई तरफ होता है, दाहेनी तरफ ३, और इस प्रकार दाईं तरफा सारमल याई तरफ है । परन्तु यह फरक श६ स० ११२ में फिर ठीक फर इया गया है । र यह नहीं कह सकते कि यह फरक यों ही हो गया था या किसी विशेष कापा वश किया गया था। रूद्धसिह पएली मारके क्षेइर्ष उपाधिवाले एक पर * ॥ महाक्षस रुद्दामपुर राज्ञोक्षपस रुट्सहस " और महाक्षत्रप उपाधिचाला परे * राज्ञो मनपस दादाम्न पुत्र राज्ञो महाक्षत्र पस छमएस* *यया कद्रदाम्न पुरस के स्थानमें ' सद्दामपुत्रस' लिखा रहता १। तया दूसरी चार वाजप उपाधेिवाले सिक्कों पर * राज्ञो महानपरा दग्नि इनमें राज्ञो क्षनपस रुईसीसे गई मनप उपाधिवाद्यों पर * राज्ञो महाक्षत्रपस कद्दामपुरस शो मापसे रुद्रसस " अयउ। 'कदामपुर' की जगह 'सद्भदाप्पुस' ला होता है । जया इन सरके दूसरी सरफ अम्वाः पूर्वोक्त शर्क-सत् लिखे इएले हैं। २१