पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/६३

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क्षत्रय वंश । पिसने 'साहचका अनुमान है कि शायद यह सन्यदामा नवदामाका बढी भाई होगा। रुद्धसेन प्रथम [ मा ब्रम् १२१–१४४ (६० स० १६१-२२२३ म स० २५६-३७९ }] यह कृसिंह प्रथमका पुत्र थी । इसके चोंदी और मिश्रधातुके सिक्के मैिलते हैं । इन पर शक-संवत लिखा हुआ होता है । इनमैसे क्षत्रप उपाधिवाले चॅदीके सिकफ पर एक तरफ "राज्ञी महाक्षनपस रुट्सहसपुनम राज्ञः क्षत्रपस रुद्रसेनस " और दूसरी तरफ श० स० १११ या १२३' लिखा रहता है । तथा महाक्षप उपाधेिवालों पर उलटी तरफ "राज्ञो महाक्षत्रपस रुद्रसीस पुनस रात अहापस रुसेनस " और सीची तरफ श० स० १२३ से १४४ सर्कका कोई एक संवत् लिखा होता है। | इसके मिश्रधातुके #िकॉपर बैस नहीं होता। केवल श० १० १३१ पा १३३ होने विति होता है कि मैं नि भी इसी समयके हैं। कुसेनके सभपके दो 5G भी मिले हैं। पहला मूलवार ( बौदा राज्य ) गवर्ने मिला है। यह 5 से ०१२३ की वैशाख कृष्ण पञ्चमका है। इसमें इसकी उपाधि "राजा महाक्षत्रप स्वामी " लिखी है । दुसरा लेस जसघन ( उत्तरी काठियावाड़) में मिला है। यह श० स० १५५ (गा १२६ } की भाद्र कृष्णा पञ्चमीका है । इसमें एक झार चनमानेका वर्णन है। इसमें इनकी दशावळी इस प्रकार दी है (१) यद् ३ का ६ स्पष्ट पदा नहीं जाता है। (१) I A 5,1B90, 52, (1) J, R 4, 5, 1520,