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भारत में अंगरेज़ी राज

१२७८ भारत में अंगरेजी राज घातक नेता सिख सिपाहियों के साथ विश्वासघात करने वाले न थे । विलियम पडबई स और आगे चल कर लिखता है- सिखों के विश्वास ‘फीरोज़शहर आस मुदकी, और में सिखों की पराजय के बाद सिख सेना का विश्वास रजा जानसिंह, तेजसिंह और अपने अन्य नेताओं पर से बिलकुल उठ गया । वे उन पर यह दोष लगाने लगे कि ये लोग सिखों के नाश के लिए अंगरेज सरकार के साथ मिले हुए हैं । उन्होंने अब जम्मू के राजा गुलाबसिंह को अपना नेता बनने के लिए बुला भेजा । राजा गुलाबसिंह ने स्वीकार कर लिया और अपनी एक बहुत बड़ी विश्वस्त पहाड़ी सेन लेकर लाहौर जा पहुँचा लाहौर दरबार को उसने यह समझाया कि मैं अपनी इस सेना से लाहौर के किले की रक्षा कर सँगा, जिले के अन्दर की सिख सेना को सतलज नदी ( सुबहँव ) की ओर भेज दिया जाय ।x & K गुलाबसिंह ने इस सिख सेना से ज़ोर देकर यह भी कह दिया कि जब तक मैं तुमसे न आ मिटैं तब तक अंगरेनों पर हमला करने का प्रयास न करना । यह कह कर यह एक न एक बहाना लेकर अपना जाना टताता रहा । वह अच्छी तरह जानता था कि उचित समय पर अंगरे हमला करके सुबव जीत लेंगे ।' ' इतिहास लेखक कनिम ने भी साफ़ लिखा है कि अंगरेजों के और सिख सेना के नेताओं में यह पहले से तय हो चुका था कि अंगरेजों के हमला करने पर सिख नेता अपनी फ़ौज को छोड़ कर ‘अलग हो जायेंउसे कट जाने दें, सतत पार करने में अंगरेजों

  • Ibid, p, 104.