पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/३०६

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१३८५
सन् १८५७ की क्रान्ति से पहले

सन् १८५७ की क्रान्लि से पहले १३८५ यूरोप और एशिया के अन्य देश शों में भ्रमण करने के बाद अज़ीमुएला खाँ भारत लौटा । अब एक झोर रही बिट्टर में फ्रान्ति बापू जी सतारा में बैठा हुया न य, नर। की योजना और यहाँ के लोग को तैयार कर रहा था और दूसरी ओोर अज़ीमुरला खाँ और नाना दूध घिर में बैठे हुए नागामी क्रान्ति के नक़्शे को पूरा कर रहे थे । प्राप्ति की ग्रोज्ञना करने वालों का मुख्य विचार यह था कि भारत के समस्त हिन्दू और मुसलमान झूठे सम्राट बदादुरशाह झएडे के नीचे मिल कर अंगरेजों को देश से बाहर निकाल दें और फिर सम्राट ही के झण्डे के नोचे अपने देश के शरमन या न . सिरे से प्रबन्ध करें 1 इसके लिए एक विशाल और गुप्त समझठग को आवश्यकता थी; औौरस इठन के बाद इस बात की भी प्रावश्ययना थी कि समस्त भारत में एक साथ एक दिन अंगरेजों के विवेक विद्रोह खड़ा कर दिया जाय । इस विशारत गुप्त सनटन की नींव मालूम होता है कि बिष्ट्र । दी में रफ्घी गई। साठन तमा चिशान होने गुप्त संगठन कर हुए भो इतना सम्पूर्णसुन्दर औौर मुख्य निर के तैयारी था और उसे अंगरेज़ सी जाग होम में वरणें इतनी अच्छी तरह गुप्त रकया गया कि इस विषय में अनेक . अंगरेज़ इतिहास लेखकों तक ने विश्व के प्रवर्तक अंगर : जान नयों । फी योग्यता की मुक्तकण्ठ से प्रशंसा की है। अधिकतर गरे ही की पुस्तकों से हमें इस सनठन के विषय में जो कुछ मालूम दी ।