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चरबी के कारतूस और क्रान्ति का प्रारम्भ

चरबी के कारतूस और क्रान्ति का प्रारम्भ १३४६ इस पर प्रसिद्ध इतिहास लेखक विलियम लैकी लिखता है : - यहू लज्जाजनक और भयहर सच्चाई है कि जिस यlत का एक सिपाहियों को विश्वास था, यह बिलकुल सच थी । " और आगे चल कर लैकी लिखता है । : इस घटना पर फिर से दृष्टि डालते हुए अंगरेगन लेखों को वर्षा के साथ स्वीकार करना चाहिए कि भारतीय सिपाहियों ने जिन पार्टी के कारण यग़ावत की उनसे ज्यादा जयरक्त यातें कभी किसी बग़ावत को जायज़ा करार देने के लिए ग्रौर हो ही नहीं सकतीं सिपाहियों में इस प्रसन्तोष के फैलने के थोड़े ही दिनों बाद कम्पनी सरकार की ओर से एक एलान प्रकाशित सिपाहियों के साथ हुआ कि एक भी इस तरह का कारतूस फ जबरदस्ती में नहीं भेजा गया। किन्तु हाल ही में साढ़े वाईस हज़ार कारतूस अम्वाला डीपो से और चौदह हजार कारतूस सियालकोट डीपो से अर्थात् केवल दो डीपो से साढ़े छत्तीस हजार कारतूस भारतीय फौज में भेजे जा चुके थे । कई पलटना म अंगरेज अफसरों ने देशी सिपाहियों को धमकाना शुरू किया कि तुम्हें नए कारतूसों का उपयोग करना पड़ेगा । एक दो जगह सिपाहियों ने जिद की तो सारी रेजिमेण्ट को कड़ी सजा दी गई ।

  • " It is a shameful and tetrible truth that as far as the taet was con।

cerned, the Seoys were perfectly right in their belie. . . , but in lookin bnck upon i, Inglish writers mut acknowledge with humiliation that, it mutiny is evor justifahleo stronger justiication could be given than that of the Sepoy roops, "-74 Mah cy aJa, by N. f . H. Lecky, R 7, 103, 104.