पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/३५२

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प्रतिकार का प्रारम्भ

तिकार का प्रारम्भ १४२४ जनरल नील के सिपाही एक एक गाँव में घुसते थे । जितने मनुष्य उन्हें मार्ग में मिलते थे उन्हें वे बिना कई तरह की । किसी तमीज के तलवार के घाट उतार देते थे। फॉसी। ग्रा गोली से उड़ा देते थे और या फाँसी पर लटका देते थे । स्थान स्थान पर फाँसी के तख्ते खड़े किये गये जिन पर चौबीस चौबीस घण्टे बराबर काम जारी रहता था । जब इनसे भी काम न चला तो अंगरेज़ अफ़सरों ने दरख्तों की शा।ौों से फाँसी का काम लेना शुरू किया। जिस मनुष्य को फाँसी देनी होती थी उसे प्रायः हाथी पर बैठाया जाता था । हाथी को किसी ऊँची डाल के पास ले जाया जाता था । उस मनुष्य की गरदन रस्सी से डात के साथ बाँध दी.जाती थी। फिर हाथी को दा लिया जाता था और लटकती हुई लाश को उसी जगह छोड़ दिया । जाता था 1* अग्निकांड के और मॉलेसन ने अपने विप्लव के इतिहास में लिखा है कि जो लोग फाँसी पर लटकाए जाते थे, उनके हाथों नरसंहार और पैरों अंगरेजी के और को विनोद की गरज से श्र श्री आठ और नौ (8 & 9) की शकल में ड बाँध दिया जाता था ।j जब . ये उपाय भी काफ़ी दिखाई न दिए तो अंगरेज़ अफ़सरों ने गांव के गाँव जलने शुरू कर दिये । गाँव के बाहर तोप लगा दी जाती थीं और समस्त पुरुषों, स्त्रियों, बच्चों • Naratipt f thz Parlian Real, 2. 69. f Knye and tallesons istory t lacian 4try, volt, p, 177.