पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/३६९

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प्रतिकार का प्रारम्भ

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प्रतिकार का प्रारम्भ १४४३ कानपुर के किले के अन्दर गोले वसाने शुरू किए। किले के अन्दर अंगरेज़ इतनी तेजी के साथ मरने लगे कि लिखा है, उन्हें दफन करना तक कठिन हो गया। किले के अन्दर केवल एक कुश्र था। नाना की सेना ने उस पर इस ढङ्ग से गोले बरसाए कि अनेक अंगरेज़ पुरुप और स्त्री पानी न मिलने के कारण तड़पने लगे । २१ दिन तक यह गोलाबारी जारी रही। अनेक लोग जो गोलों से न मरे, पेचिस, बुखार और हैजे का शिकार हुए । किले की दीवारों पर से कम्पनी की तोपें भी साहस और धैर्य के साथ अपना कार्य करती रहीं । विप्लवकारियों के पहरे के कारण अंगरेजों के लिए कोई सन्देश वाहर भेज सकना अत्यन्त कठिन हो गया। फिर भी कम्पनी का एक वफादार हिन्दोस्तानी नौकर जनरल व्हीलर का सन्देश लेकर लखनऊ पहुँचा। यह सन्देशा एक पक्षी के परों के नीचे बँधा हुआ था। भाषा कुछ अंगरेजी, कुछ लातीनी शौर कुछ फ्रान्सीसी मिली हुई थी। पत्र का शब्दार्थ केवल यह था-- “Help! Help !! Help !!! Send us help or we are dying ! If we get help, we will come and save Lucknow !" | ‘मदद ! मदद !! मदद !!! हमें मदद भेजो, नहीं तो हम मर रहे हैं ! हमें मदद मिल जाय तो हम आकर लखनऊ को बचा लेगे !” | इस से किले के अंगरेजों की स्थिति का खासा पता चलता है। दूसरी ओर नाना के गुप्तचर बड़ी सुन्दरता के साथ अंगरेजी किले के अन्दर की खबरें नाना को ला लाकर देते थे।