पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/३६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१४४१
प्रतिकार का प्रारम्भ

प्रतिकार का प्रारम्भ १४४१ कम्पनी की देशी सेना के दो मुख्य नेता थे, सूबेदार टीकासिंह र- और सूबेदार शम्सुद्दीन खाँ । नाना साहब के दो मुख्य विश्वस्त सहायक ज्वालाप्रसाद और मोहम्मदृअली थे 1 इन चारों और नाना साहब और अज़ीमुल्ला खाँ में प्राय: किश्तियों में बैठकर गट्ठा के अपर दो दो घण्टे गुप्त मन्त्रणाएँ हुआ करती थीं । सर झूयू व्हीलर , ने कम्पनी का मैगज़ीन भी नाना साहब की रक्षा में छोड़ दिया। कानपुर के ग्रन्र उस समय अंगरेज़ इतना डरे हुए थे कि २४ मई को रमजान के बाद की ईद थी । उसी अंगरेजों में भय दिन मलका विक्टोरिया की साल गिरह थी। सल गिरह के उपलक्ष में सदा तोपों की ललम दी जाती थी । किन्तु २८ मई सन् १८५७ को कानपुर में इसलिए कोई तोप नहीं छोड़ी गई कि उससे हिन्दोस्तानी सिपाही न भड़क उठे । एफ अंगरेज अफ़सर लिखता है कि जिस समय विप्लव की कोई भूठी

  • अफ़बाह भी नगर में उड़ जाती थी, तुरन्त शहर के सब अंगरेज

भाग कर अपने बाल बच्चों समेत जनरल होलर के नए जिले में जाकर जमा हो जाते थे । ४ जून की आधी रात को अचानक कानपुर की छावनी में तीन हैं ? फ़ायर हुए। सिपाहियों को क्रान्ति प्रारम्भ करने कानपुर की कानपुर लिए यही पूर्व थी के निश्चित सूचना । सयंसे आगे सूबेदार टीकासिंदू घोड़े पर लपका। उसके पीछे पीछे सैकड़ों सवार और हजारों पैदल मैदान में निकल आए। पूर्व निश्चय के अनुसार कुछ ने अंगरेजी इमारत को आग लग