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१४५३
प्रतिकार का प्रारम्भ


प्रतिकार का प्रारम्भ १४५३ इत्यादि से पूरी तरह परिचित था। मेजर मैलकम नै १६ मार्च सन् १८५५ को गवरनर जनरल के नाम एक सरकारी पत्र में लिखा -रानी का चरित्र अत्यन्त उच्च है और झाँसी में हर मनुष्य उसे अत्यन्त प्रदर की दृष्टि से देखता है । । उस समय के समस्त इतिहास से सावित हैं कि लक्ष्मीबाई वास्तव में अत्यन्त सुचरित्र, योग्य, वीर और असाधारण बुद्धि की स्त्री थी । युद्धविद्या में वह अत्यन्त निपुण थी। उसके माता पिता विठूर में पेशबा के दरबार में रहा करते थे । लिखा है कि बिठूर के दूरवार में कुमारी लक्ष्मीबाई अत्यन्त सर्वप्रिय थी। छोटी श्रायु में ही बह निशानेबाज़ी शौर शस्त्रों के उपयोग में अत्यन्त निपुण हो गई थी । सात वर्ष की अल्पावस्था में वह घोड़े को बड़ी दक्ष सवार थी और प्रायः नाना साहब और उसके भाइयों के साथ शिकार के लिए जाया करती थी। बीर लक्ष्मीबाई झाँसी की गद्दी के इस अपमान और झाँसी की प्रज्ञा के साथ इस अन्याय को सहन न कर रानी लक्ष्मीबाई के | सकी । सन् १७ के स्वाधीनता संग्राम की वह एक नेतृत्व में स्वाधीन मुख्यतम नेत्री थी। पूर्व निश्चय के अनुसार ४ झाँसी जून सन् १८५७ को झाँसी में क्रान्ति प्रारम्भ हुई। कम्पनी की सेना सन् १८१४ के एलान के बाद ही झाँसी पहुँच 4 "... beat a very big character and is much respected by every one at Jhansi. "--Jhansi Papers, p. 28. + D. B. Parasnis' Life of Lakshmi Bai.