पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/३८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१४६१
प्रतिकार का प्रारम्भ

प्रतिकार का प्रारम्भ १४६१ शाहग के तल्लुक़्तेदार राजा मानसिंह को इससे पूर्व मालगुजारी के कुछ झगड़े में अंगरेज़ कैद कर फ़ैज़ाबाद। चुके थे । मानसिंह इस समय विप्लव के नेता की आहसाश्म , . क" में से था, फिर भी उसने विप्लव के ग्राम्य नेताओं क्रान्ति की इजाजत से २६ अंगरेज स्त्रियों और बच्चों को अपने किले के अन्दर अन्त तक सुरक्षित रखा । मौलवी अहमदशाह की आशा के अनुसार ख़ास ज़ाबाद के शहर में एक भी अंगरेज़ नहीं मारा गया। ज़ाबाद के बाद 8 जून को सुलतानपुर और १० जून को सालोनी में स्वाधीनता का झण्डा फहराने लगा । ! सुलतानपुर की सालोनी के जमींदार सरदार रुस्तमशाह और स्वाधीनता काता के राजा हनुमन्तसिंह दोनों ने प्रतिश कर ली थी कि बिना अंगरेजी राज को हिन्दोस्तान से निकाले विश्राम न लेंगे । फिर भी इन दोनों भारतीय नरेशों ने आश्रित अंगरेजों और उनके वाल बच्चों के साथ असाधारण उद्यारता का व्यवहार किया। राजा हनुमन्तसिंह के विषय में इतिहास लेखक मॉलेसन लिखता है राजा हनुमन्तसिंह "इस उदार राजपूत की अधिकांश जागीर अंगरेजों की नई बगान पद्धति के कारण चीनी जा चुकी थी । वह इस अन्याय और अपमान को बहुत महसूस करता था । फिर भी यह स्वभाव से इतना उदार था कि जिस क़ौम ने उसको aरीय फ़रीय बरबाद कर दिया था उस रूम के