पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/४२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१४९५
दिल्ली, पंजाब और बीच की घटनाएँ

दिल्ली, पंजाब और वीव की घटनाएँ १४४५ नैराश्य कैम्प में जाकर अपने निर्दोष ग्रीव सिटितयों और अनेक काले

  • मौकरों को मार डाला 1 अपने इन हिन्दोस्तानी नौकरी की वफ़ादारी,

और उनकी सेवाओं का उन्होंने कुछ भी खयाल नहीं किया, क्योंकि "इन गोरे सिपाहियों के हृदय में समस्त काले एशिया निवासियों के प्रति प्रचण्ड धूणा की आग भड़क रही थी ।'s १४ जुलाई के आक्रमण में अंगरेजों की इससे भी बुरी हालत हुई। जनरल रीड भी घबरा गया । बीमार पड़ अंगरेही सेना में कर और देकर १५ जुलाई को यह इस्तीफ़ा पहाड़ पर चला गया। जनरल बिलसन ने उसकी जगह ली । अंगरेजी सेना का यह चौथा कमाण्डरन-चीफ़ था । दिल्ली की सीमा के ऊपर स्वाधीनता की पताका को तहराते हुए दो महीने हो चुके थे । भारत भर में प्रनेक अंगरेज़ यह कहने लगे थे कि, “जो सेना दिल्ली का मोहासरा कर रही है। उसका स्वयं मोहासरा हो रहा है ।’ यहाँ पर हम यह याद दिला देना चाहूझते हैं कि अंगरेज़ी सेना केवल दिल्ली की पश्चिमी दीवार के नीचे थी, शेष तीर्ता जोर से क्रान्ति के सहायकों और शुभ ने को के लिए आने जाने का मार्ग खुला हुआ था। अंगरेजी सेना में उस समय श्रनेक लोग सजदगी के साथ यह विचार कर रहे थे कि दिल्ली विजय करने का विचार छोड़ कर प्रभी किसी दूसरी ओर ध्यान दिया जाय । तक के आकार का एक के पास समय कम कम से कम से पानी का काम कर से कार का से , ' में कम से कम • Kaye and 21alleson's Indian Natir, vol i, p. 438.