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भारत में अंगरेज़ी राज

१२२ भारत में अंगरेजी राज करने का साहस होने लगा । इतिहास लेखक फ़ॉरेस्ट लिखता है। कि कम्पनी की ओर के भारतीय सिपाही उस समय अपने प्राणों पर खेलकर असाधारण वीरता के साथ अपने सेनापतियाँ की नाज्ञा का पालन कर रहे थे । इस बीच कम्पनी की और गुप्तचरों का मोहकमा भी खासा उनति कर गया था । इस मोहकमे का धान गुप्तचरों का । , ' हडसन था । शहर के अन्दर कई विश्वासघातक मोहकमा पैदा किए जा चुके थे, जिनमें मुख्य सम्राट वहादुरशाह का समधी मिरज़ा इलाहीबख्श था। मिरज़ा इलाहीबख्श प्रायः सदा बहादुरशाह के साथ रहता था और महल की तमाम वातों और सलाह की ख़बरें मेजर हडसन तक पहुँचाता रहता था। ७ सितम्बर से कम्पनी की सेना ने नगर के अन्दर प्रवेश करने के जी तोड़ प्रयल शुरू कर दिए 1 ७ से १३ तक सितम्बर का उन्हें प्रति दिन अनेक जानें देकर पीछे हट जाना दूसरा हफ्ता पड़ा । किन्तु इस बीच कम्पनी की तोपों के कारण शहर फ़सील में जगह जगह दरारें पड़ गई थीं। १४ सितम्बर को कम्पनी की सेना ने नगर में प्रवेश करने का अन्तिम और सबसे अधिक ज़ोरदार प्रयल किया । वास्तव में उस दिन का दिल्ली का संग्राम क्रान्ति के सबसे अधिक भयकर संग्रा में से था । प्रातःकाल जनरल विलसन ने कम्पनी की सेना को पाँच दलों ३४ सितम्बर का में विभक्त किया । एक दल ब्रिगेडियर जनरल संग्राम निकल्सन के अधीन, दूसरा करनल कैम्पबेल के