पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/५०२

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अवध और बिहार

अवध और विहार १५28 हमले की तैयारी शुरू की। हैयलॉक को मजबूर होकर ४ अगस्त तक मइस्लवार में ठहरे रहना पड़ा। इसके बाद हैवलॉक फिर लखनऊ की ओर बढ़ा । घशीरतगक्ष में ही उसे फिर कान्तिकारियों से मोरचा लेना पड़ा। इस दिन के संग्राम में हैवलॉक के तोन सौ ग्रामी मारे गए। उसके डेढ़ हजार सिपाहियों में से अब केवल साढ़े श्राठ सौ बाकी रह गए थे। विवश होकर हैवलॉक को फिर दूसरी बार गद्दा की और पीछे लौट श्राना पड़ा। अबध की ग्रामीण जनता के इस बीर पराक्रम को देख कर इतिहास लेखक इन्स लिखता है “कम से कम चवधनिवाखिों के संग्राम को हमें स्वाधीनता का शुद्ध मानना पड़ेगा t 49 ? , s ११ अगस्त को हैबलॉक तीसरी बार बशीरतग की ओर बढ़ा। तीसरी बार उसे ग्रामीण आबधनिवासियों के साथ मोरचा लेना पड़ा और तीसरी बार जनरल हैवलॉक को पीछे हट कर मनलवार में रुकना पड़ा। इस बीच नाना साहब को सागर, ग्वालियर इत्यादि से काफ़ी सहायता पहुँच चुकी थी । मामा ने फिर एक नामा के मनसूबे वार किसी दूसरे स्थान से गद्दत को पार कर कानपुर पर हमला किया। जनरल नोल कानपुर में था। उसके • " t least the struggle of the Oudaians must be characterised as a War ol Independence. "-Innes' SAv Ra