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भारत में अंगरेज़ी राज

१५९२ भरत में अंगरेजी राज पीछे हटा दिया। इतने में और अधिक सेना अंगरेजों की मदद के , लिए पहुँच गई । अमरसिंह के सौ आदमियों ने अपनी जान हथेली पर लेकर युद्ध किया। न्त में अमरसिंह और उसके दो और साथी मैदान से निकल गए। शेप ४७ वहीं पर कट मरे। मौनदी के संग्राम में कम्पनी की ओर मरने वालों और घायलों की संख्या इससे कहीं अधिक थी। कम्पनी की सेना ने फिर अमरसिंह का पीछा किया । एकवार कुछ सवार अमरसिंह के हाथी तक पहुँच गए। हाथी पकड़ लिया। गया, किन्तु अमरहिंह कूद कर निकल गया। अमरसिंह ने अब कैमूर के पहाड़ों में प्रवेश किया। शत्रु ने वहाँ पर भी उसका पीछा किया, किन्तु अमरसिंह ने हार स्वीकार न की । इसके बाद राजा आमर सिंह का कोई पता नहीं चलता। नसरसह का अंत में जगदोशापुर के महल की स्त्रियों ने भी शत्रु के हाथ में पड़ना गवारा न किया । लिखा है कि जिस समय जगदीशपुर की सल की डेढ़ सौ स्त्रियों ने यह देखा कि वीर थियों श्रय शत्रु के हाथों में पड़ने के सिवा कोई चारा नहीं, तो वे तोपों के मुंह के सम्मुख खड़ी होगई और स्वयं अपने हाथ से फ़लीता लगा कर उन सब ने अपने ऐहिक जीवन का अन्त कर दिया ! लखनऊ के पतन के बाद क्रान्तिकारियों का कोई विशेष केन्द्र