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भारत में अंगरेज़ी राज

' ११५६ भारत में अंगरेजी राज के दो जिनकी इइलिस्तान की हर श्रेणी के लोगों में खूब खपत होती है वे सब पदार्थ अधिक परिमाण में और अधिक निश्चिन्तता के साथ सदा इइलिस्तान पहुँचते रहेंश्रर इसके साथ ही इनलिस्तान के बने हुए माल के लिए भारत में अनन्त माँग बनी रहे । सन् १७५७ से लेकर १८४ तक करीब १०० वर्ष के अनुभव और परामर्श के बाद इक़लिस्तान के नीतिों को सौ वर्ष का इस बात विश्वास हुआ कि भारत- का थोड़े से यासियों को अंगरेजी शिक्षा देना इस देश में अंगरेज़ी साम्राज्य को कायम रखने के लिए आवश्यक है । किन्तु इस पर भी ये लोग इतने बड़े प्रयोग के लिए एकाएक साहस न कर सके। ट्रेवेलियन ने अपने पत्र और बयान दोनों में उन्हें साफ़ आगाह कर दिया था कि अशिक्षित या अंगरेज़ी शिक्षा से वन्चित भारतवासियों के दिलों में अपनी पराधोनता के विरुद्ध गहरा असन्तोष भीतर ही भीतर भड़कता रहता था, जिसका विदेशी शासकों को पता तक नहीं चल सकता था । यह स्थिति अंगरेजों के लिए बेहद खतरनाक थो 1 ट्रेवेलियन के बयान में दिल्ली और उत्तर भारत के अन्दर सन् १८५७ से दस वर्ष पूर्व से क्रान्ति की ने गुप्त तैयारियों और सम्भावनाश्नी को ओर साफ़ सकत मिलता

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