पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/५७०

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लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे

लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे १६११ रोज़ के मुकाबले के लिए आगे बढ़ी। खूब घमासान संग्राम

हुआ । एक बार अंगरेजी सेना के दाहिने भाग को पीछे हट

जाना पड़ा। कम्पनी के तोपची अपनी तोपें छोड़ कर भाग गए । लक्ष्मीबाई अपने घोड़े पर सब से भागे थी। इसके बाद स्वयं सर ह्य रोज़ बाई ओर से मुड़ कर लक्ष्मीबाई के मुक़ाबले के लिए बढ़ा । अन्त में मैदान पर यू रोज़ के हाथों रह 1 २४ मई को कम्पनी की सेना ने कालपी में प्रवेश किया। कालपी के किले में अंगरेजों को करीब ७०० मन बारूद और असंख्य अस्त्र शस्त्र और अन्य सामान हाथ पाया। रानी लक्ष्मीबाई, बसाइब औौर वाँदे के नवाब और थोड़ी सी सेना सहित, कालपी छोड़ कर निकल गई । निस्सन्देह सर , जो इस समय तक क़रीब एक हज़ार मील की कठिन यात्रा कर, पहाड़ों, जइलों और नदियाँ को पार कर, बड़ी बड़ी सेनाओं पर विजय प्राप्त कर चुका था और नरबदा से जमना तक का प्रदेश कम्पनी के लिए फिर से विजय कर चुका था, कम्पनी के अत्यन्त योग्य और वीर सेनापतियों में से था । क्रान्तिकारियों के पास अब न सामान था, न फोई ढन्न की सेना औौर कोई फिर भी लक्ष्मीबाई और न कुिल । सीधया के नाम तात्या टोपे ने हिम्मत म हारी। तात्या गुप्त फ्रान्तिकारियों कालपी से कर रीति से निकल ग्वालियर पहुँचा। ग्वालियर में उसने महाराजा सोंधिया की सेना और प्रजा को अपनी घोर कियाइस नई सेना को साथ लेकर का पत्र