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भारत में अंगरेज़ी राज

१६२६ भारत में अगर राज हज़ारों सिपाही श्रा नाकर जमा होने लगे । घाघरा नदी के किनारे चौक घाट में बेगम हज़रतमहल औौर सरदार मानू खां की सेना व थी। शाहजादा फीरोज़शाह भी इस समय अवध में था। इनके अतिरिक्त रुइया का राजा नरपतसिंहराजा रामबख़्श, बहुनाथ सिंह, चन्दासिंह, गुलाबसिंह, भूपाल , हनुमन्तसिंह इत्यादि अनेक बड़े बड़े ज़मींदार अपने अपने सैन्यटल लेकर अवध को फिर से अंगरेजों के हाथों से छीनने के प्रयत्नों में लग गए । बूढ़े । राजा बेनीमाधव ने फिर से लखनऊ पर चढ़ाई करने की तैयारी शुरू की। अंगरेज़ यह सुन कर चकित रह गए कि १३ महीने तक लगातार युद्ध जारी रहने और ६ महोने से ऊपर लखनऊ में रक्त की नदियाँ बढ़ने के बाद फिर कोई वीर लखनऊ पर हमला करने का साहस कर रहा है ! क्रान्तिकारियों की सेना इस बार लखनऊ के निकट नबावग में जमा हुई। १३ जून सन् १८५८ को सेनापति 3 होष प्रॉण्ट के अधीन कम्पनी की सेना ने, जिसमें कई हिन्दोस्तानी पलटनें शामिल थीं, अचानक इन लोगों पर हमला किया। उस दिन के संग्राम का वृत्तान्त हम सेनापति होष नॉण्ट ही के शब्दों में देना चाहते हैं। वह लिखता है ‘हम लोगों पर उनके हमले असफल रहे, किन्तु वे हमले अयन्त शोरदार थे, और हमें उनका मुक़ाबला करने के लिए कठिन परिश्रम करना प्रा । अनेक सुन्दर और साहसी ज़तदारों ने दो तोपें खुले मैदान में लाकर पीछे की ओर से हम पर हमला किया । मैंने हिन्दोस्तान में बहुत से संग्राम