पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/६१६

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सन् ५७ के स्वाधीनता संग्राम पर एक दृष्टि

सन ५७ के स्वाधीनता संग्राम पर एक दृष्टि १६५१ और उन्हीं की सहायता और उपस्थिति के कारण उन स्थानों की रक्षा करना इमारे लिए समय हो सका । यदि पटियाला और नींद के राजा हमारे साथ मित्रता म दर्शाते और यदि सिख हमारी पलों में भरती न होते ऑौर उधर पक्षाघ को शान्त न रश्ते, तो हमारा दिल्ली का सोहासरा कर सकना सर्बया असम्भव होता है ल ननऊ में भी सिखों ने हमें बूथ सहायता दी, और हर स्थान पर जिस तरह कि भारतवासी हमारी सेनाओं में भरती होकर लड़ाई में हमारे बल को बढ़ाते थे, उसी तरह हर जगह भारतवासी ही हमारी घिरी हुई सेनाओं की मदद करते थे, झमें भोजन पहुंचाते थे और हमारी सेवा करते ये । इसी क्षण यहाँ इस कैम्प में हमारी सत्र की हालत क्या है ! देशी फ़ौजें ही सब से आगे रह कर हमारी रक्षा कर रही हैं, देशी लोग मारे घोड़ों के लिए घास काट रहे हैं, वे ही हमारे साईस हैं, वे ही हमारे हाथों को चारा देते हैं, वे ही हमारी यारयरदारी का इन्तजाम करते हैं, कमरियट में वे ही इमारे भोजन का प्रबन्ध करते हैं, वे ही हमारे गोरे सिपाहियों का स्नान मकाते है, वे ही हमारे कैंप को सफाई करते हैं, वे ही हमारे देरे गाइते हैं और उन्हें इधर उधर ले जाते हैं, वे ही हमारे अफ़सरों का सब काम करते हैं और वे ही हमें अपने पास से रुपए उधार देते हैं । जो गोरा सिपाही मेरे साध लिग्खने पढ़ने का काम करता है वह कहता है कि बिना हिन्दोस्तानी

मौकरीडोली उठाने वानों, अस्पताक्ष के आदमि और अन्य भारतवासित

के, उसकी पलटम एक सप्ताह भी जीवित न रह सकती है?' • " Yet it must be admitted that, with all their courage, they (The RBritisla) would have been quie exeminated f the ativek had been, all and altogether, hostate to themThe lespetate defences mate by the garrisons ) were no doubt heroie, but the natives shared tlueit glory k and they by their