पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/६३४

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सन् १८५७ के बाद

सन् १८५७ के बाद १६६8 श्रॉफ लॉर्ड्स पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी के धनाड्य हिस्सेदारों का ?"प्रभाव अधिक था, इसलिए हाउस ऑफ़ लॉर्डस ने फ़ॉक्स की तजवीज को नामंजूर कर दिया । अगले साल यानी सन् १७८३ में प्रधान मन्त्री विलियम पिट ने यह तजबीज़ पेश की कि इनेंलिस्तान के मन्त्रिमण्डल के मातहत एक नया मोहकमा कायम किया जाय जिसे ‘वोर्ड ऑफ़ करण्ट्रोत’ कहा जाय । मन्त्रियाँ में से एक इस बोर्ड का प्रधान रहेऔर कम्पनी के डाइरेक्टर अपने भारतीय राज के शासन का जो कुछ प्रबन्ध करेंयह सब इस बोर्ड की देख रेख में करें । सन् १७८४ से लेकर सन् १24 तक इXलिस्तान का यह सरकारी मोहकमा और कम्पनी के डाइरेक्टर, दोनों मिलकर ब्रिटिश भारत की शासन नीति चलाते रहे । दूसरे शब्दों में करीब करीब शुरू से ही भारत में अंगरेजी राज की असली वाग इङलिस्तान की सरकार और वहाँ की पालिमेण्ट के हाथों में रही और ईस्ट इण्डिया कम्पनी इस मामले में उनकी केवल एक पजण्ट थी । सन् १७८३ के बाद सन् १८१३ में एक नई बात यह की गई कि उस समय से हिन्दोस्तान के साथ तिजारत करने का अनन्य । शधिकार भी पालिमेन्ट ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी से ले लिया और हर अंगरे या हर अंगरेज़ कम्पनी को इस देश के साथ तिजारत करने का अधिकार दे दिया 1 बजह यह थी कि इनलिस्तान और हिन्दोस्ताग के बीच की तिजारत बहुत बढ़ गई थी और सारी अंगरेज़ कीम उससे लाभ उठाने के लिए लालायित थी 1 हम ऊपर