पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/६७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१७०५
सन् १८५७ के बाद

सन् १८५७ के बाद १७०५ हैं . अमरीका के प्रसिद्ध राTट्रपति बराहम लिकन ने एक स्थान पर लिखा है। :- कोई फ़ीम भी इतनी भती नहीं हो सकती जो दूसरी क़ौम पर शासन कर सके ।"% यदि लासी के मैदान से ही भारत में अंगरेजी पक्ष का आरम्भ मान लिया जाय, तो भारत के लिए १८० साल के विदेशी शासन का नतीजा कम से कम ऊपर की दृष्टि से दिन प्रति दिन बढ़ती हुई भयकर दरिद्रता, निर्बलता, , श्राप दिन के छुटकारत, मलेरिया, इनफ्लु पक्ष और मंहग के लिया और कुछ दिखाई न दिया । इइलिस्तान के लिए भी, यदि आा भारत के अपर से अंगरेजों का राज इट बाय तो कल हल्कशायर के तमाम पुतलीघर और देश के अन्य असंख्य कारख़ानेजो भारतीय पराधीनता ही के सहारे चल रहे हैं, बन्द हो , लाखों अंगरेज़ पूंजीपति और मजदूर बेरोजगार हो जखैऔर सारा देश आश्चर्यजनक तेज़ी के साथ दरिद्रता, घन ति औौर बरबादी की भोर जाता हुआ दिखाई देने लगे । नैतिक क्षेत्र में दोनों देशों के लिए नतीजा इससे भी अधिक नश्शाकर है । हर श्रन्याय श्रन्यायी औौर श्रन्याय पीड़ित दोनों के लिए एक खमाम घातक होता है। एक रूम के अपर दूसरी क़ौम के बला शासन द्वारा शासक फ़ौम के अन्दर स्यान्धता, आरा औौर श्रविवेक का बढ़ते जाना और विवेक, सहृदयता तथा मानव प्रेम

  • "There is no nation good enough to govern another nation. "

President Abraham Lincoin.