पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/६७२

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१७०७
सन् १८५७ के बाद

सन् १८५७ के बाद १७०७ प्राकृतिक सम्बन्ध संसार के के किसी भी देश के लिए हितकर नहीं हो सकता। इस अप्राकृतिक स्थिति से बाहर निकलने का तरीका भी केमल एक हो हो सकता है और वह यह है कि इन दोनों देशों के इस न्याय विरुद्ध औौर धर्म विरुद्ध सम्बन्ध का जितनी जल्दी हो सके प्रन्स कर दिया जावे । इसका उपाय भी अधिकतर शासित कौम ही के हाथों में है 1 ऊपर के समस्त अध्यायों से जाहिर है कि कोई विदेशी शासन किसी ट्रेन के ऊपर न बिना शासितों की सहायता के कायम हो सकता था और म बिना उनके सहयोग के जारी रह सकता है । हर विदेशी नासम का ग्राहार जिसके सहारे यह शासम जिन्दा राइता है वह धन और सम्पत्ति है तो शासक जाति व्यापार के जरिए या दूसरे उपाय से शासित देशों से कमाती है । इसी तरह वह जीवन प्रद बागु जिसके बिना कोई विदेशी शासन कहीं पर एक क्षण भी कायम नहीं रख सकता शासितों का परस्पर विश्वास और अनैक्य है । दूसरे शब्दों में भारत और इंगलिस्तान की वर्तमान स्थिति में इस अप्राकृतिक और नाशकर सम्बन्ध को अन्त करने के तीन ही मुख्य उपाय हैं --- १-विदेशी वस्तुओं और ख़ासकर विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार फर देश की बनी वस्तुओं औौर हाथ के कते और हाथ के बुने खद्दर के उपयोग द्वारा विदेशी शासकों के मार्ग से सबसे प्रबल प्रलोभन को दूर कर देना । के