पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/८४

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पहला अफ़ग़ान युद्ध

पहला फगान युद्ध ११७७'। वे पक सुसहूठित कौम थे । उनके राष्ट्रीय चरित्र में अभी तक वे घातक दोष उत्पन्न होने न पाए थे जिनके कारण उनसे कहीं अधिक प्राचीन और कहीं अधिक सभ्य भारतवासी अपने प्यारे देश की भाज़ादी से हाथ धो चुके थे । अफ़ग़ानों ने अब अच्छी तरह देख लिया कि इन विदेशियों के हाथों में सिवाय टा, बेईमानी, लूट, इत्या और अपनी स्त्रियों के सतीत्वनाश के और कुछ न मिल सका, उनकी आंखें खुल गई । बिदेशियों के चरित्र को अब ये पूरी तरह सम गए 1 अपनी क़ौमी आज़ादी के साथ साथ कौमी इज़्ज़त तक का उन्हें निकटवर्ती भविष्य में ड्रामा दिखाई देने लगा।' उनका खून खौलने लगा, वे बट्टले के लिए कटिबद्ध हो गए । अफ़ग़ानियों ने अब एक दिल होकर अंगरेजों को अपने देश से बाहर निकाल देने का सकल्प कर लिया। शाहशुजा का वध वे समझ गए कि शाहशुजा हमारी समस्त ' आपत्तियों का मूल कारण है । शाहता को पता लग गया। वह डर गया, उसने फिर एक बार काबुल से भाग कर भारत में आश्रय लेने का इरादा किया किन्तु इसी बीच ५ अप्रैल सन् १८४२ को एक जोशीले अफ़ग़ान ने अपनी वन्दूक से उस अफ़ग़ानी मीर जाफ़र के पापमय जीवन का अन्त कर दिया । दूसरा मनुष्य, जिससे अफ़ग़ानी इस समय हद दरजे की घृणा करने लगे थे, अंगरेज़ राजदूत बन्स था । यन्र्स को इश्या फ़ग़ानों ने देख लिया कि जिस बर्रा की अफ़ग़ान बादशाह और वहाँ की जनता ने इतनी ज़बरदस्त ख़ातिर