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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/१०१

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५१४
भारत में अंगरेज़ी राज

५१४ भारत में अंगरेजी राज राजा अमरसिंह के दिल में केवल डर बैठाने के लिए रेज़िडेण्ट ने कई बार बिना किसी वजह के कम्पनी की खुली जबरदस्ती सेना को राजमहल के फाटक तक बुलवाया और उसका प्रदर्शन करवाकर वापस कर दिया। यह वही अंगरेज़ी सेना थी जो पिछली सन्धि के अनुसार राजा की रक्षा के लिए और राज के खर्च पर तोर में रक्खी गई थी। २३ जनवरी सन् १७६६ को रेज़िडेण्ट ने इस सेना के अंगरेज़ अफसर करनल बेयर्ड को हुकुम दिया कि- "राजा अमरसिंह का सरकील शिवराव और राजा के दो भाई त्रिम्बाजी और शंकरराव, तीनों में से कोई किले से बाहर न निकलने पावे।" अगले दिन २४ जनवरी को रेज़िडेण्ट ने सेना लेकर अचानक राजा श्रमरसिंह को घेर लिया और उसे डर दिखा कर उससे एक काग़ज़ पर दस्तखत करा लिए, जिसमें राजा अमरसिंह ने अपना सारा राज कम्पनी के हवाले कर दिया। इसके अगले ही दिन राजा अमरसिंह ने गवरनर जनरल सर जॉन शोर को लिखा कि-"मुझे घेर कर, डर दिखा कर और तरह तरह के झूठ बोलकर रेज़िडेण्ट ने मुझसे उस काग़ज़ पर दस्तखत करा लिए हैं, इसलिए मेरा राज मेरे पास रहने दिया जावे।" राजा अमरसिंह ठीक समय पर पिछली सन्धि की सब शर्ते पूरी Honorable East India Company for the rभंemaining term of the natural life. " . . . The Honorable East India Company was not exceedingly scrupulous as to the means by which territory was to be acquured , . . ." -Lifeof General, the Right Honorable Sir Davsd, Baird, pp 119et seq.