सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/१७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
५९१
बाजीराव का पुनरभिषेक

५६१ बाजीराब का पुनरभिषेक निस्सन्देह वेल्सली 'इन आपस के झगड़ो' को पैदा करा देने में चिर अभ्यस्त था। बाजीराव को फिर से मसनद पर बैठाने के लिए अब पूना में सारी तैयारी हो चुकी थी। २७ अप्रैल सन् बाजीराव का १०३ को गवरनर जनरल को श्राक्षा पाकर पुनरभिषेक करमल मरे के अधीन कम्पनी के लगभग २३०० सैनिक, जिनमें से करीब आधे हिन्दोस्तानी और प्राधे अंगरेज़ थे, और करनल क्लोज़ सबको साथ लेकर बाजीराव ने बसई से कूच किया, और १३ मई को पूना में प्रवेश कर उसी दिन अपने विदेशी मित्रों की सहायता से फिर एक बार पेशवा की मसनद पर बैठकर अपने मुख्य मुख्य नौकरों और सरदारों से नजरे स्वीकार की। अंगरेज़ कम्पनी ने जो कुछ खर्च बाजीराव के लिए किया था उसके एवज़ में पेशवा के राज्य का कुछ और इलाका इस समय कम्पनी को मिल गया और कम्पनी की सबसीडोयरी सेना मराठा साम्राज्य की राजधानी पूना में कायम हो गई। गवरनर जनरल और उसके साथियों की इच्छा पूरी हुई; किन्तु महाराष्ट्र में अथवा पूना में बहुत कम ऐसे थे जिन्होंने इस काररवाई में वास्तविक उत्साह अनुभव किया हो अथवा उसे मराठा have taken no one step to impede our march, . . they have not yet made peace among themselves, much less they have agreed to attack, or in any particular plan of attack "-Colonel Wellesley's letter to the Governor general, dated 25th April, 1803