५६ भारत में अंगरेज़ी राज वेल्सही जानता था कि बसई की सन्धि को पना करने के लिए उस पर सींधिया और भोसले दोनों की । रजामन्दी ज़रूरी है। वह यह भी जानता था के विरुद्ध वेल्सखी की युद्ध की " कि यदि वसई की सन्धि को सब शर्ते मराठा तैयारी मरेशों को ठीक ठीक मालूम हो गई तो कम से कम सींधिया की उन पर स्वीकृति मिलना असम्भव है। बसई की सन्धि की कुल १६ धाराये थीं जिनमें विशेषकर तीसरी और सत्रवी धाराओं पर सींधिया जैसे समझदार नरेशों को एतराज़ होना ज़रूरी था । तीसरी धारा वह थी जिसके अनुसार पेशवा ने अपने राज में कम्पनी की सबसीडीयरी सेना रखना स्वीकार कर लिया था। सत्रवर्षी धारा यह थी कि भविष्य में पेशवा विना कम्पनी सरकार से सलाह किए न किसी दूसरे नरेश के साथ किसी तरह का पत्र व्यवहार कर सकता है और न किसी से कोई सम्बन्ध रख सकता है। निस्सन्देह इस धारा का स्पष्ट अभिप्राय मराठा मण्डल को तोड़ देना है और सोंधिया तथा भोसले इसके लिए किसी तरह राज़ी न हो सकते थे । वेल्सली इन सब बातों को अच्छी तरह समझता था। उसने इसके दो उपाय किए एक उसने सोंधिया और भोसले दोनों को धोखा देकर, बिना उन्हें बसई की सन्धि की नकल दिए, उन्हें ज़बानी यह बहका कर कि बसई की सन्धि का प्रभाव पेशवा के साथ सींधिया और भोसले के सम्बन्ध पर बिलकुल न पड़ेगा, उस सन्धि पर उनकी स्वीकृति प्राप्त कर लेना चाहा, और दूसरे उसने मराठा सत्ता का सर्वनाश
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