दूसरे मराठा युद्ध का प्रारम्भ ६०५ स्थिति और उसकी गम्भीरता को देख रहा था । सब से पहले उसे मराठा मण्डल में फिर से ऐक्य पैदा करने की आवश्यकता नज़र आई । इसलिए पूना जाने से पहले वह बाजीराब की इच्छा के अनुसार जसवन्तराव होलकर और बरार के राघोजी भोसले दोनों के साथ मिल कर सलाह कर लेना चाहता था। उस समय के पत्रों से साबित है कि स्वयं जसवन्तराव भी काशीराव होलकर, बाजीराव पेशवा और दौलतराव सींधिया तीनों के साथ फिर से मेल कर लेने के लिए उत्सुक था । बरहानपुर से पचास कोस पच्छिम में बदौली नामक स्थान पर दौलतराव सींधिया, जसवन्त राव होलकर और राघोजी भोसले तीनों नरेशों का मिलना निश्चित हो गया। दौलतराव ने अपनी राजधानी से चलकर नर्बदा को पार कर बरहानपुर की ओर प्रस्थान किया और बहुत दिनों तक बरहानपुर में ठहर कर ४ मई सन् १८०३ को बरहानपुर से बदौली के लिए कूच किया । सींधिया का अन्तिम लक्ष्य इस समय पूना था और उसके समस्त पत्रों से सावित है कि बसई के सन्धि के विषय में वह केवल यह साफ़ साफ़ तय कर लेना चाहता था कि उस सन्धि का प्रभाव मराठा मण्डल की संहति यानी पेशवा और अन्य मराठा नरेशों के परस्पर सम्बन्ध पर बिलकुल न पड़ेगा। अंगरेज़ भी उसे जबानी यही विश्वास दिला रहे थे और यही बात वह पूना पहुँचकर सब की मौजूदगी में पक्की कर लेना चाहता था। अंगरेजों के अनेक पत्रों से मालूम होता है कि सोंधिया.
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