६२० यवहार भारत में अंगरेज़ी राज कर रहा था उनके विषय में दो तीन बातें ध्यान में रखने योग्य हैं। पकयह कि कॉलिन्स सींधिया से अपनी राजधानी कॉलिन्स का लौट जाने के लिए कह रहा था, किन्तु इस लोटन पार के लिए एक बार भी कोई मियाद नियत नहीं की गई थी और महाराजा सोंधिया का अपने अनुयाइयों और सामान के साथ तुरन्त राजधानी लौट जाना इतना सरल न था; दूसरे यह कि कॉलिन्स की एक मात्र माँग सींधिया से लौट जाने की ही न थी, कॉलिन्स के पत्रों से पता चलता है कि उसकी माँगे प्रति दिन बढ़ती और बदलती चली गई; यहाँ तक कि इन दोनों मरेशों से उसी समय लौटने के लिए कहा जा रहा था और उसी समय उन पर यह भी जोर दिया जा रहा था कि श्राप दोनों कम्पनी के साथ सबसीडीयरी सन्धि कर ले। तीसरी और सबसे विशेष बात यह कि ये दोनों मराठा नरेश उस समय अपने ही इलाके के अन्दर थे। कॉलिन्स का व्यवहार महाराजा दौलतराव के साथ अधिकाधिक अशिष्ट होता चला गया, और दौलतराव बराबर उसे धैर्य और शान्ति की सलाह देता रहा । असलियत यह थी कि अंगरेज़ किसी न किसी तरह सींधिया को भड़का कर युद्ध छेड़ना चाहते थे और सींधिया अभी तक शान्ति के स्वम देख रहा था। ४ जुलाई सन् १८०३ को दौलतराव सींधिया, राघोजी भोसले मीडिया और और करनल कॉलिन्स तीनों की भेट हुई । इस भोंसले की समय जो बातचीत हुई उससे प्रकट है कि अभी सदिच्छाएँ तक भी इन दोनों मराठा नरेशों को बसई की
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