६२४ भारत में अंगरेज़ी राज "महारामा दौलतराव और बरार के राजा दोनों की सेनाएं उनके अपने अपने इलाकों के अन्दर है। इन नरेशों ने सोदगी के साथ वादा किया है कि हम न अजम्ती घाट पर चढ़ेंगे और न पूना की ओर जायेंगे । वे लिखकर और अपनी अपनी मोहरें लगाकर गवरनर जनरल को विश्वास दिला चुके हैं कि हम कभी बसई की सन्धि को उलटने की कोशिश न करेंगे, और ये तहरीरें उनको मित्रता के इरादों का असन्दिग्ध प्रमाण हैं। अब हम अपने अपने वकील पूना भेजने की तजवीज कर रहे हैं ताकि जिस तरह का विश्वास हमें हाल में जनरल वेल्सली की ओर से दिलाया गया है उसी तरह का विश्वास पेशवा की ओर से भी हमें मिल जाय । [अर्थात् यह कि वसई की सन्धि का प्रभाव पेशवा और अन्य मराठा नरेशों के परस्पर सम्बन्ध पर बिलकुल न पड़ेगा। ]xxx सींधिया और होलकर के बीच इस समय जिस सम्धि की बातचीत हो रही है वह अभी पूरी तरह तय नहीं हुई और जब तक वह तय न हो जाय महाराजा सींधिया राजधानी वापस नहीं जा सकते।" बसई की सन्धि को हुए सात महीने हो चुके थे, किन्तु अभी तक भी उस सन्धि की कोई प्रति अंगरेज़ों ने सीधिय धया का स्पष्ट सोंधिया या बरार के राजा को न दी थी। - इस बीच दोनों घेल्सली भाई अपने पत्रों में सींधिया और भोसले दोनों को बराबर यह धोखा देते रहे कि बसई की सन्धि का सींधिया और भोसले की स्वाधीनता पर या पेशवा के साथ उन दोनों के सम्बन्ध पर यानी मराठा मण्डल की आन्तरिक व्यवस्था पर किसी तरह का असर न
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